वाणी प्रकाशन की सीईओ अदिति माहेश्वरी, पेंगुइन पब्लिकेशन में पब्लिशर मिली ऐश्वर्या और डमरू ऐप के फाउंडर राम मिश्रा ने NDTV क्रिएटर्स मंच पर 'क्या बिकता है, क्या टिकता है- साहित्य के दो छोर' मुद्दे पर अपने विचार रखे. पेंगुइन पब्लिकेशन की मिली ऐश्वर्या ने कहा कि साहित्य की यात्रा को निरंतर आगे बढ़ते रहने के लिए 'बिकना और टिकना' दोनों बेहद जरूरी है. वहीं, वाणी प्रकाशन की सीईओ अदिति माहेश्वरी ने बताया कि जो जिस युग में लिखा गया, वो उस युग का सर्वश्रेष्ठ साहित्य नहीं माना गया, लेकिन आने वाली पीढ़ियां उसे वो दर्जा देती हैं.
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वाणी प्रकाशन की सीईओ अदिति माहेश्वरी ने बताया कि हर युग में हर तरह का साहित्य लिखा गया है. जो जिस युग में लिखा गया, वो उस युग का सर्वश्रेष्ठ साहित्य नहीं माना गया, लेकिन आने वाली पीढि़यां उसे वो दर्जा देती हैं. जैसे धर्मवीर भारती के शब्दों में 'गुनाहों का देवता' उनकी सबसे कमजोर किताब थी. वह इसके फाइनल ड्राफ्ट से भी बेहद खुश नहीं थे. लेकिन आज 'गुनाहों का देवता' जिस मुकाम पर पहुंच गई है, उसे देखा जा सकता है. अगर भारती जी आज जीवित होते, तो बेहद निराश भी होते कि 'गुनाहों का देवता' को इतना क्यों पसंद किया जा रहा है.क्योंकि इसके अलावा उनकी किताबे- सूरज का सातवां घोड़ा और अंधयुग भी मौजूद है. कहने का मकसद ये है कि क्या लिखा जा रहा है, क्या टिक रहा है और क्या पसंद किया जा रहा है, ये सब उस युग पर निर्भर करता है.
डमरू ऐप के फाउंड राम मिश्रा ने बताया कि अगर आपने एक अच्छा गाना बनाया है और आपको एक प्लेटफॉर्म चाहिए, तो ऐसे लोगों के लिए डमरू ऐप अच्छी जगह है. जब तक आप बिकना शुरू नहीं होते हैं, जब तक आपके गाने लोगों तक पहुंचे शुरू नहीं होते हैं, तब तक कितना भी जोर लगा लीजिए दूसरे प्लेटफॉर्म पर आपको डिस्कवरी नहीं मिलेगी. वहीं, अगर आप डमरू पर आते हैं, तो हम पूरा जोर लगाते हैं कि गाना ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे. गायक को पहचान मिल सके. अगर आप चाहते हैं कि आपके गाने सभी प्लेफॉर्म यूट्यूब और अन्य सॉन्ग ऐप पर चलें, तो डमरू पर आप आ सकते हैं. हम आपको रॉयल्टी भी सबसे लेकर देंगे.
कोई गाना वायरल कैसे होता है... डमरू ऐप के फाउंडर राम मिश्रा ने बताया, 'आपको गूगल की एल्गोरिदम या वायरल करने की सोच के साथ किसी गाने को नहीं लिखना है. आपको हमेशा अपने दिल से धुन बनानी चाहिए. गाना बनाए, जो लोगों के दिलों का छू दे. गूगल की किसी एल्गोरिडम को सोचकर न बनाएं. अगर आप ऐसा करेंगे, तो बेहद मुश्किल है. कुमार विश्वास ने 'कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है', किसी एल्गोरिदम को सोचकर नहीं लिखा था. लेकिन ये बिक भी रहा है और सालों से टिका भी हुआ है.
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पेंगुइन पब्लिकेशन की मिली ऐश्वर्या ने बताया, 'हम यही चाहते हैं कि हर किताब लंबे समय तक टिकी रहे. रिडर उसे पसंद करें. लेकिन हर नई किताब को लेकर उत्सुकता रहती है. नई किताब का बिकना और टिकना भी बेहद जरूरी है. इसलिए बिकना और टिकना दोनों ही बेहद जरूरी है. अगर ऐसा नहीं होगा, तो नए लेखकों को मौका नहीं मिलेगा. नए लेखकों को टिकने के लिए भी जगह चाहिए. मैं एक बात यह भी कहना चाहूंगी कि अच्छी कंटेंट की किताब को कभी आप दबा कर नहीं रख सकते हैं. हम किसी किताब को छापने से पहले यही देखते हैं कि वो कि ऑरिजनल है. कंटेंट में कितना दम है.
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