कभी बाल मजदूर ललिता दुहरिया अब एक बाल नेता हैं और उन्होंने अब अपने गांव में बाल विवाह और बाल श्रम को रोक दिया है. दूसरी ओर, जय कुमार पोद्दार 1999 में कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन फाउंडेशन द्वारा बचाए जाने से पहले एक दुकान पर काम करते थे. इसके बाद 9 वर्षीय जय को जयपुर के बाल आश्रम भेजा गया जहां उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की. आज जय एक कार्यकर्ता हैं और उन्होंने 1,000 से अधिक बच्चों को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराया है. ललिता और जय की यात्रा उन्हीं के शब्दों में.
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