जिन इलाकों में कुछ हफ्ते पहले तक सूखे का कहर था, वहां अब बाढ़ का कहर है. तब हम सूखे को जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में देख रहे थे. अब बाढ़ का भयंकर कहर है, अब हम बाढ़ को जलवायु परिवर्तन की नज़र से देख रहे हैं. ज़मीन पर बाढ़ के कारण इंसानों की बनाई नीतियां हैं जिसे मैन मेड क्राइसिस कहते हैं. प्राकृतिक संसाधनों का बेख़ौफ़ इस्तमाल जलवायु परिवर्तन के कारणों को बढ़ाता है. इस बाढ़ को दो तरह से समझिए. दो महीने की बारिश अगर दो हफ्ते में हो जाए तो क्या होगा. क्यों ऐसा हो रहा है. आप मानें या न मानें जो लोग ऊंचे बांधों, कार्बन उत्सर्जन, और नदियों के किनारे निर्माण कार्यों को लेकर चेतावनी देते रहे हैं, जिन्हें हम एक्सपर्ट कहते हैं, बुलाते हैं और सुनकर भुला देते हैं, उनका मज़ाक उड़ाते हैं, लेकिन उनकी एक एक बात सही साबित होती जा रही है. कई दशक से उनके लेख सही साबित होते जा रहे हैं. इस तबाही में अरबों रुपये की संपत्ति और जानमाल की बर्बादी हुई है. हम भूलना चाहते हैं मगर नदियां और प्रकृति भूलने नहीं दे रही हैं.
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