स्वच्छ भारत
महात्मा गांधी के लिए
भारत का असली सफ़ाई चैम्पियन
आज़ादी से भी ज़्यादा अहम है स्वच्छता...
- मोहनदास कर्मचंद गांधी
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महात्मा गांधी की स्वच्छता की दिशा में यात्रा के अहम पल

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1896-1897

ब्यूबॉनिक प्लेग

ब्यूबॉनिक प्लेग के फैलाव के दौरान महात्मा गांधी राजकोट में स्वच्छता विभाग के लिए स्वेच्छा से काम कर रहे थे. उन्होंने स्वच्छ शौचालयों और उचित वेस्ट मैनेजमेंट की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए कामकाज की निगरानी की. उन्होंने पाया कि गरीबों के घर अक्सर अमीर लोगों की तुलना में ज़्यादा साफ़ होते हैं.

1917

चम्पारण सत्याग्रह

चम्पारण सत्याग्रह के दौरान महात्मा गांधी ने नील की खेती करने वाले किसानों को स्वच्छता और हाईजीन की अहमियत समझाई. उन्होंने स्वच्छता अभियान चलाए और बीमारियों से बचाव के लिए स्वच्छता बनाए रखने के बारे में समाज को शिक्षित किया.

1932

हरिजन अभियान

महात्मा गांधी ने छुआछूत के खात्मे के लिए हरिजन अभियान चलाया, जिसमें सामाजिक सुधार के तौर पर स्वच्छता को भी बढ़ावा दिया गया. उन्होंने ज़ोर देकर समझाया कि स्वच्छता की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ चुनिंदा समुदायों तक ही सीमित नहीं रखी जानी चाहिए, बल्कि इसे सभी को अपनाना चाहिए.

1893-1914

दक्षिण अफ्रीका

महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका के अनुभवों ने ही इसकी नींव रखी थी. उन्होंने स्वच्छता को लेकर पश्चिमी देशों में जारी प्रथाओं का अध्ययन किया और भारतीय समाज में वैसे ही मानकों को बढ़ावा देना शुरू किया. स्वच्छता को लेकर उन्होंने व्यक्तिगत उत्तरदायित्व को प्रोत्साहित करते हुए इस बात पर ज़ोर दिया कि "हर किसी को अपना सफ़ाईकर्मी स्वयं होना चाहिए...

1915

भारतीयों में जागरूकता

भारत लौटने के बाद महात्मा गांधी ने न सिर्फ़ स्वच्छता से जुड़े अपने प्रयासों को जारी रखा, बल्कि सफ़ाई को अस्पृश्यता के ख़िलाफ़ लड़ाई से जोड़ दिया. उन्होंने स्वच्छता के लिए किए जाने वाले कामों में सामुदायिक भागीदारी की वकालत की और सभी के लिए जीने के साफ़-सुथरे माहौल की अहमियत पर ज़ोर दिया.

1920

सेवाग्राम आश्रम

सेवाग्राम आश्रम में महात्मा गांधी ने स्वच्छता से जुड़ी आदतों को सख्ती से लागू किया. उन्होंने सुनिश्चित किया कि सफ़ाई से जुड़ी गतिविधियों में सभी लोग शामिल हों, ताकि यह दिखाई दे कि स्वच्छता सभी का साझा उत्तरदायित्व है, सिर्फ़ तथाकथित निचली जातियों के लोगों का नहीं.

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महात्मा गांधी और स्वस्थ भारत
महात्मा गांधी और स्वस्थ भारत

तोड़ डाले सामाजिक बंधन स्वच्छता को लेकर अपनी कोशिशों के ज़रिये महात्मा गांधी ने गहरी जड़ें जमा चुके सामाजिक बंधनों को चुनौती दी. उनका मानना ​​था कि सफ़ाई कर्मचारियों को 'अछूत' मानने से स्वच्छता को भी 'अस्वच्छ' कार्य माना जाने लगा, और उसकी उपेक्षा की जाने लगी.

सभी के लिए सम्मान और सुरक्षा महात्मा गांधी के स्वच्छता अभियान अस्पृश्यता उन्मूलन के मिशन के साथ जुड़े हुए थे. सभी जातियों को स्वच्छता कार्य में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित कर उन्होंने सभी के लिए समानता और सम्मान को बढ़ावा दिया. उनकी कोशिशों में उपयोग में आसान शौचालयों को डिज़ाइन करना शामिल था, जिन्हें साफ़ करने के लिए अन्य किसी शख्स की ज़रूरत नहीं पड़ती थी.

ब्यूबॉनिक प्लेग के दौरान रहे बदलाव के प्रेरक ब्यूबॉनिक प्लेग के दौरान महात्मा गांधी का काम बेहद अहम रहा. उन्होंने घरों का निरीक्षण किया और पाया कि अमीरों के घरों की तुलना में गरीबों के घर अक्सर साफ़-सुथरे होते हैं. उनके इस नतीजे पर पहुंचने से सामाजिक मानदंडों को चुनौती मिली और इसकी ज़रूरत महसूस की गई कि स्वच्छता से जुड़ी आदतें सभी को अपनानी चाहिए. गांधी ने संपन्न लोगों के पाखंड की भी आलोचना की और अलग-अलग वेस्ट बकेट और स्वच्छ पानी तक सभी की पहुंच जैसे व्यावहारिक उपायों की सिफ़ारिश की.

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