राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए दिल्ली सरकार ने कृत्रिम बारिश के लिए आज क्लाउड सीडिंग कराई. कानपुर से उड़ा जहाज दिल्ली के कई इलाकों से गुजरते हुए मेरठ में लैंड हुआ. दिल्ली के खेकरा, बुराड़ी, नार्थ करोल बाग, मयूर विहार, सड़कपुर और भोजपुर के इलाके से गुजरा. इसको लेकर दिल्ली की मुख्य विपक्ष आम आदमी पार्टी ने कहा, कृत्रिम वर्षा का कोई नामोनिशान नहीं है,भाजपा ने सोचा कि इंद्र देवता करेंगे वर्षा,सरकार खर्चा दिखाएगी.
आम आदमी पार्टी के दिल्ली प्रदेश संयोजक सौरभ भारद्वाज ने कहा कि दिल्ली में प्रदूषण कम करने के लिए कृत्रिम वर्षा कराने के नाम पर भी भाजपा सरकार ने फर्जीवाड़ा कर दिया. जबकि आईएमडी की रिपोर्ट बता रही है कि मंगलवार को दिल्ली में कहीं भी बारिश नहीं हुई.
भाजपा सरकार ने कृत्रिम वर्षा का दावा किया,मगर कहीं बारिश नहीं हुई. लगता है कि भाजपा से इंद्र देवता भी नाराज हैं. भाजपा ने सोचा होगा कि इंद्र देवता वर्षा करेंगे और सरकार खर्चा दिखाएगी क्योंकि ऐसा कोई यंत्र या तंत्र नहीं है जो बता सकें कि बारिश इंद्र देवता करा रहे हैं या भाजपा सरकार कृत्रिम वर्षा करा रही है.
भारद्वाज ने कहा, 'अब तो इंद्र देवता के काम का भी श्रेय यह सरकार ले सकती है, क्योंकि ठेकेदार को बारिश की पेमेंट भी तो करनी है.'
इससे पहले दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा कि क्लाउड सीडिंग में आठ फ़्लेयर्स को इस्तेमाल किया गया है.उन्होंने कहा, "एक फ़्लेयर दो से ढाई किलो की होती है जो दो से ढाई मिनट तक चलती है. इन फ़्लेयर्स के ज़रिए बादलों में रसायनों का मिक्सचर छोड़ा गया है. आईआईटी कानपुर के मुताबिक़, 15 से 20 फ़ीसदी उसमें ह्युमिडिटी थी. यह प्रक्रिया तक़रीबन आधा घंटे चली. कानपुर से दिल्ली पहुंचने और इस पूरी प्रक्रिया में तक़रीबन डेढ़ घंटे लगे और अब विमान मेरठ पहुंचा है. इस विमान से इस ट्रायल का दूसरा और तीसरा चरण भी आज ही शुरू होगा.
मंत्री ने कहा, आईआईटी कानपुर का मानना है कि 15 मिनट से लेकर चार घंटे में कभी भी बरसात हो सकती है लेकिन यह बड़े स्तर की नहीं होगी, क्योंकि इसके अंदर नमी कम है. उम्मीद है कि आईआईटी कानपुर के रिज़ल्ट अच्छे रहेंगे. उन्होंने आगे अगर यह ट्रायल सफल रहे तो फ़रवरी तक के लिए दिल्ली में क्लाउड सीडिंग की योजना बनाई जाएगी.
बता दें कि, क्लाउड सीडिंग में बीज के रूप में सिल्वर आयोडाइड, पोटैशियम क्लोराइड और सोडियम क्लोराइड जैसे पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है. इन पदार्थों को एयरक्राफ्ट आदि की मदद से बादलों में छिड़का जाता है.ये पदार्थ बादल में मौजूद पानी की बूंदों को जमा देती हैं, जिसके बाद बर्फ़ के टुकड़े दूसरे टुकड़ों के साथ चिपक जाते हैं और बर्फ़ के गुच्छे बन जाते हैं. ये बर्फ के गुच्छे ज़मीन पर बारिश के रुप में गिरते है.
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Written by: विजय शंकर पांडेय© Copyright NDTV Convergence Limited 2025. All rights reserved.