दिल्ली में आने वाले समय में अगर बिन मौसम के बारिश हो, तो हैरान होने की जरूरत नहीं है. देश की राजधानी में एक ऐसे प्रोजेक्ट पर काम किया जा रहा है, जिसमें बिन मौसम के भी बारिश कराई जा सकेगी. भारी प्रदूषण के समय ऐसी बारिश किसी वरदान से कम साबित नहीं होगी. दिल्ली सरकार के पहले आर्टिफिशियल रेन पायलट प्रोजेक्ट की तैयारियां पूरी हो गई हैं. सभी तकनीकी तैयारियां और जरूरी मंज़ूरियां लगभग पूरी हो चुकी हैं. अब बस मौसम की अनुकूलता, खासकर उपयुक्त बादलों की उपलब्धता का इंतज़ार है. जैसे ही सही बादल नज़र आते हैं, प्रोजेक्ट शुरू कर दिया जाएगा.
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने परियोजना को मौसम संबंधी मंज़ूरी दे दी है और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में क्लाउड सीडिंग की संभावना की पुष्टि की है. यह पायलट प्रोजेक्ट 'प्रदूषण नियंत्रण के लिए क्लाउड सीडिंग की तकनीकी क्षमता का परीक्षण एवं मूल्यांकन' आईआईटी कानपुर के सहयोग से लागू किया जाएगा, जो साइंटिफिक और तकनीकी संचालन का नेतृत्व करेगा. ये तकनीक उन दिनों किसी वरदान से कम नहीं होगी, जब दिल्ली प्रदूषण के कारण किसी गैस चैंबर में बदल जाती है और सांस लेना मुश्किल हो जाता है.
आर्टिफिशियल रेन पायलट प्रोजेक्ट के बारे में पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने बताया, 'तैयारी पूरी है, बस अब बादलों का इंतज़ार है. जैसे ही मौसम अनुकूल होगा, दिल्ली अपने पहले आर्टिफिशियल रेन प्रोजेक्ट की गवाह बनेगी. यह सिर्फ एक प्रयोग नहीं, बल्कि भविष्य के लिए एक रोडमैप है. विज्ञान पर आधारित, सटीकता से संचालित और डेटा ड्रिवेन मॉनिटरिंग के साथ.' पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने बताया, 'स्वच्छ हवा सभी का अधिकार है, एंटी स्मॉग गन, स्प्रिंकलर, और निर्माण स्थलों पर धूल रोकने के कड़े नियमों से लेकर अब आसमान तक, हम दिल्ली की हवा को साफ करने की दिशा में हर संभव प्रयास कर रहे हैं. यह पायलट प्रोजेक्ट सिर्फ बारिश लाने का नहीं, बल्कि वैज्ञानिक साहस और पर्यावरणीय अनुकूलता का प्रतीक है.'
आईआईटी कानपुर ने पहले भी इस तरह के सात सफल क्लाउड सीडिंग परीक्षण किए हैं, जो अप्रैल से जुलाई के बीच सूखा-प्रभावित क्षेत्रों में किए गए थे. अब दिल्ली में इस पायलट प्रोजेक्ट का क्रियान्वन प्रदूषण को कम करने के उद्देश्य से किया जाएगा. इसका उद्देश्य केवल बारिश कराना नहीं है, बल्कि यह समझना है कि क्या ऐसी कृत्रिम वर्षा हवा में मौजूद PM2.5 और PM10 जैसे प्रदूषकों की मात्रा को कम कर सकती है. इस प्रयोग में मुख्यतः निंबोस्ट्रेटस (Ns) बादलों का चयन किया जाएगा जो 500 से 6000 मीटर की ऊंचाई पर होते हैं और जिनमें कम से कम 50% नमी होनी चाहिए. इस प्रोजेक्ट की कुल अनुमानित लागत ₹3.21 करोड़ है और इसका पूरा खर्च दिल्ली सरकार उठाया जा रहा है. यह पहल दिल्ली सरकार की साफ़ हवा और स्वस्थ वातावरण देने की मजबूत कोशिश को दिखाती है, जिसमें नए वैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है.
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Edited by: आराधना सिंह© Copyright NDTV Convergence Limited 2025. All rights reserved.