15 Organs Affected by Pollution: दिल्ली की हवा एक बार फिर खतरनाक लेवल पर पहुंच चुकी है. सुबह उठते ही आंखों में जलन, गले में खराश और सांस लेने में दिक्कत अब आम बात हो गई है. कई इलाकों में एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 400-500 के पार दर्ज किया जा रहा है, जिसे गंभीर से भी ऊपर की श्रेणी में रखा जाता है. ऐसे में सवाल सिर्फ इतना नहीं है कि बाहर निकलना सुरक्षित है या नहीं, बल्कि यह भी है कि इतना जहरीला प्रदूषण (Pollution) हमारे शरीर के अंदर क्या-क्या बिगाड़ रहा है.
प्रदूषण को अक्सर लोग सिर्फ फेफड़ों की समस्या मान लेते हैं, लेकिन हकीकत इससे कहीं ज्यादा डरावनी है. हवा में मौजूद PM2.5, PM10, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और सल्फर जैसे जहरीले कण सांस के रास्ते शरीर में प्रवेश कर खून के जरिए लगभग हर अंग तक पहुंच जाते हैं. यही वजह है कि लंबे समय तक प्रदूषित हवा में रहने से हार्ट, दिमाग, आंख, त्वचा ही नहीं, बल्कि पाचन तंत्र और हार्मोन सिस्टम भी प्रभावित होने लगता है. आइए जानते हैं कि दिल्ली के इस गले तक पहुंच चुके प्रदूषण का असर शरीर के किन 15 अंगों पर सबसे ज्यादा पड़ रहा है.
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, शरीर के लगभग सभी अंग हवा प्रदूषण से प्रभावित हो सकते हैं. अपने छोटे आकार के कारण, कुछ हवा प्रदूषक फेफड़ों के जरिए खून में जा सकते हैं और पूरे शरीर में फैल सकते हैं, जिससे पूरे शरीर में सूजन और कैंसर का खतरा हो सकता है. यहां कुछ जरूरी अगों के बारे में बताया गया है जो एयर पॉल्यूशन से प्रभावित होते हैं.
दिल्ली का प्रदूषण सबसे पहले और सबसे गहरा असर फेफड़ों पर डालता है. हवा में मौजूद PM2.5 जैसे सूक्ष्म कण सांस के साथ सीधे फेफड़ों की गहराई तक पहुंच जाते हैं. ये कण फेफड़ों की अंदरूनी परत में सूजन पैदा करते हैं, जिससे सांस लेने की क्षमता धीरे-धीरे कम होने लगती है. लंबे समय तक प्रदूषण में रहने से अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और COPD जैसी बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है. बच्चों और बुजुर्गों में लंग्स ग्रोथ और फंक्शनिंग दोनों प्रभावित हो सकती हैं.
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प्रदूषित हवा सिर्फ सांस की बीमारी नहीं बढ़ाती, बल्कि दिल के लिए भी बेहद खतरनाक है. हवा में मौजूद जहरीले कण खून के जरिए दिल की नसों तक पहुंच जाते हैं. इससे ब्लड वेसल्स में सूजन आती है और ब्लड वेसल्स सख्त होने लगती हैं. नतीजा यह होता है कि ब्लड प्रेशर बढ़ता है और हार्ट अटैक व स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है.
बहुत कम लोग जानते हैं कि प्रदूषण दिमाग को भी नुकसान पहुंचाता है. सांस के जरिए गए सूक्ष्म कण ब्लड-ब्रेन बैरियर को पार कर दिमाग तक पहुंच सकते हैं. इससे याददाश्त कमजोर होना, ध्यान लगाने में परेशानी और बार-बार सिरदर्द जैसी समस्याएं बढ़ती हैं. लंबे समय तक प्रदूषित माहौल में रहने से स्ट्रेस, एंग्जायटी और यहां तक कि डिप्रेशन का खतरा भी बढ़ सकता है.
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जहरीली हवा आंखों के लिए किसी धीमे जहर से कम नहीं है. प्रदूषण के कारण आंखों में जलन, लालिमा और पानी आना आम समस्या बन गई है. हवा में मौजूद धूल और केमिकल्स आंखों की नमी को छीन लेते हैं, जिससे ड्राई आई सिंड्रोम हो सकता है. लंबे समय तक आंखों की सुरक्षा न करने पर इंफेक्शन और देखने की क्षमता कमजोर होने का खतरा भी बढ़ जाता है, खासकर उन लोगों में जो ज्यादा समय बाहर बिताते हैं.
नाक प्रदूषण का पहला गेटवे होती है. जब हम जहरीली हवा में सांस लेते हैं, तो धूल और केमिकल नाक की अंदरूनी झिल्ली में जमने लगते हैं. इससे नाक बंद रहना, बार-बार छींक आना और साइनस की समस्या बढ़ जाती है. लंबे समय तक ऐसा रहने पर एलर्जिक राइनाइटिस और क्रॉनिक साइनसाइटिस हो सकता है.
प्रदूषित हवा सीधे गले से होकर फेफड़ों तक जाती है, इसलिए गला लगातार इरिटेशन में रहता है. इससे गले में खराश, सूखापन और जलन महसूस होती है. कुछ लोगों की आवाज बैठने लगती है या बार-बार खांसी आती है. अगर यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहे, तो वॉयस बॉक्स में सूजन और इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है.
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प्रदूषण त्वचा और सेहत दोनों का दुश्मन है. हवा में मौजूद गंदगी और टॉक्सिन्स त्वचा के पोर्स में जाकर जमा हो जाते हैं. इससे मुंहासे, रैशेज, एलर्जी और स्किन डल दिखने लगती है. प्रदूषण त्वचा की प्राकृतिक नमी छीन लेता है, जिससे समय से पहले झुर्रियां पड़ सकती हैं.
प्रदूषण का असर सिर्फ सांस तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह पाचन तंत्र को भी प्रभावित करता है. हवा में मौजूद जहरीले कण खाने और लार के साथ पेट में पहुंच सकते हैं. इससे गैस, अपच, पेट दर्द और भूख न लगने जैसी समस्याएं बढ़ती हैं. कुछ रिसर्च बताती हैं कि प्रदूषण आंतों के अच्छे बैक्टीरिया को भी नुकसान पहुंचा सकता है, जिससे इम्यूनिटी और डाइजेशन दोनों कमजोर होते हैं.
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प्रदूषण सिर्फ शरीर ही नहीं, मन को भी बीमार करता है. लगातार खराब हवा में रहने से चिड़चिड़ापन, बेचैनी और तनाव बढ़ जाता है. कई लोगों को नींद न आने या बार-बार थकान महसूस होने लगती है. सूरज की रोशनी कम होने और बाहर निकलने से बचने के कारण सोशल लाइफ भी प्रभावित होती है, जो मानसिक स्वास्थ्य पर सीधा असर डालती है.
प्रदूषित हवा में मौजूद सूक्ष्म कण सांस के जरिए फेफड़ों में जाने के बाद खून में मिल सकते हैं. इससे खून में ऑक्सीजन की मात्रा कम होने लगती है. इसकी वजह से शरीर के अंगों तक पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती, जिससे जल्दी थकान, चक्कर आना और कमजोरी महसूस होती है.
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लिवर शरीर का सबसे बड़ा डिटॉक्स अंग है और प्रदूषण का बोझ सबसे ज्यादा इसी पर पड़ता है. हवा में मौजूद जहरीले कण जब खून के जरिए लिवर तक पहुंचते हैं, तो उसे इन्हें फिल्टर करने के लिए एक्स्ट्रा मेहनत करनी पड़ती है. लंबे समय तक यह दबाव बना रहे, तो लिवर की फंक्शनिंग कमजोर होने लगती है.
किडनी का काम खून से गंदगी और टॉक्सिन्स को बाहर निकालना होता है. प्रदूषण के कारण जब शरीर में टॉक्सिन्स की मात्रा बढ़ जाती है, तो किडनी पर एक्स्ट्रा दबाव पड़ता है. लंबे समय तक प्रदूषित वातावरण में रहने से किडनी की फिल्टर करने की क्षमता धीरे-धीरे घट सकती है.
हाल की कुछ स्टडीज में यह सामने आया है कि लंबे समय तक प्रदूषण के संपर्क में रहने से हड्डियों की मजबूती पर असर पड़ सकता है. प्रदूषण विटामिन D बनाने में बाधा डालता है, क्योंकि स्मॉग की वजह से सूरज की रोशनी कम मिलती है. विटामिन D की कमी से हड्डियां कमजोर होने लगती हैं और जोड़ों में दर्द की शिकायत बढ़ सकती है.
जब खून में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है, तो मांसपेशियों को पर्याप्त एनर्जी नहीं मिल पाती. इसका असर यह होता है कि हल्का सा काम करने पर भी शरीर में दर्द, अकड़न और थकान महसूस होने लगती है. प्रदूषण के कारण एक्सरसाइज और वॉक भी कम हो जाती है जिससे मसल्स कमजोर पड़ने लगती हैं.
हवा में मौजूद धूल और बैक्टीरिया मुंह के जरिए शरीर में प्रवेश करते हैं. इससे मसूड़ों में सूजन, ब्लीडिंग और बदबूदार सांस की समस्या बढ़ सकती है. लंबे समय तक प्रदूषण के संपर्क में रहने से दांतों पर प्लाक जमने और इंफेक्शन का खतरा भी बढ़ जाता है.
कमजोर इम्यून सिस्टम: लगातार प्रदूषण में रहने से रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है और लोग जल्दी बीमार पड़ते हैं.
हार्मोन सिस्टम: प्रदूषण हार्मोन असंतुलन पैदा कर सकता है, जिससे थकान, वजन बढ़ना और मूड स्विंग्स होते हैं.
बच्चों की ग्रोथ: बच्चों के फेफड़े और दिमाग अभी विकसित हो रहे होते हैं, इसलिए उन पर असर ज्यादा और लंबे समय तक रहता है.
नींद और मानसिक संतुलन: प्रदूषण का असर नींद पर भी साफ दिखता है. सांस लेने में परेशानी, बेचैनी और लगातार थकान के कारण नींद पूरी नहीं हो पाती.
(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)
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Edited by: Ashutosh Kumar Singh© Copyright NDTV Convergence Limited 2025. All rights reserved.