भारत में बिजली उत्पादन की लागत में जल्द ही कमी दिखाई देगी और इसका सीधा फायदा ग्राहकों को मिलेगा और उन्हें सस्ती बिजली मिल सकेगी. सरकार ने कोयला आधारित सभी बिजली संयंत्रों को FGD (Flue Gas Desulphurisation) मानकों में ढील दे दी है. इससे देश के 80 फीसदी थर्मल पावर प्लांट्स को फायदा मिलेगा.
एफजीडी मानक थर्मल पावर प्लांटों से निकलने वाली गैसों में से हानिकारक गैस सल्फर डाई आक्साइड के उत्सर्जन से जुड़ा है. बिजली संयंत्रों के पास रहने वाली आबादी को ध्यान में रखकर ये नियम सरकार ने लागू किया था, लेकिन अब इससे छूट का नोटिफिकेशन जारी किया गया है. अभी तक सभी थर्मल बिजली संयंत्रों को प्लांट से निकलने वाली गैसों में से सल्फर डाई आक्साइड को बाहर निकालने वाला एफजीडी सिस्टम लगाना अनिवार्य था.
सरकार ने दुनिया भर में अपनाए जा रहे मानकों के अनुरूप गैस उत्सर्जन नीतियों में बदलाव किया है. पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने कहा है कि एफजीडी मानक अब उन्हीं बिजली संयंत्रों पर लागू होगा, जो घनी आबादी के निकट या बेहद प्रदूषित इलाकों के आसपास होंगे.
भारत के नामचीन संस्थानों आईआईटी दिल्ली, CSIR-NEERI और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज (NIAS) का कहना है कि कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से सल्फर डाई आक्साइड का लेवल राष्ट्रीय मानकों से काफी कम है. सल्फर डाई आक्साइड का स्तर 3 से 20 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के आसपास है, जबकि राष्ट्रीय स्तर 80 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर का है.
इस अध्ययन में भारतीय जलवायु परिस्थितियों के अनुरूप पर्यावरण के ऐसे मानकों के असर पर भी सवाल उठाया गया था. कहा गया था कि भारत के कोयले में सल्फर की मात्रा 0.5 फीसदी से भी कम है और अनुकूल मौसमी हालातों की वजह से सल्फर डाई आक्साइड का फैलाव भी कम ही होता है.
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