विज्ञान जर्नल 'द लैंसेट'में प्रकाशित एक अध्ययन में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं. इस अध्ययन के मुताबिक दिल्ली में होने वाली मौतों का करीब 11.5 फीसदी मौतें वायु प्रदूषण की वजह से होती हैं. इस तरह होने वाली मौतों की संख्या करीब 12 हजार है.यह आंकड़ा देश में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों के मामले में सबसे अधिक हैं.
देश के इन शहरों में हुआ अध्ययन
इस अध्ययन में अहमदाबाद, बंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता, मुंबई, पुणे, शिमला और वाराणसी को शामिल किया गया. इन शहरों में हर साल होने वाली औसतन 33 हजार मौतों के लिए वायु प्रदूषण को जिम्मेदार माना गया. इन शहरों में प्रदूषण से सबसे कम 59 मौतें हर साल होती हैं.यह शहर में होने वाली कुल मौतों का करीब 3.7 फीसदी है. इन शहरों में होने में होने वाली कुल मौतों का करीब 7.2 फीसदी मौतें वायु प्रदूषण से होती हैं.इन शहरों में होने वाली मौतों में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों की संख्या करीब 33 हजार है.
इस अध्ययन में देश और दुनिया के दूसरे देशों के शोधकर्ता शामिल हुए. अध्ययन में पता चला कि इन शहरों में पीएम 2.5 की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ)की ओर निर्धारित सुरक्षित मात्रा से अधिक है.डब्लूएचओ ने हवा में पीएम 2.5 की मात्रा को 15 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक सुरक्षित माना है. लेकिन इन शहरों में 99.8 फीसदी दिनों में पीएम 2.5 की मात्रा इससे अधिक थी.
मौत की आशंका कहां अधिक है
शोधकर्ताओं ने 2008 और 2019 के बीच इन दस शहरों में हुई मौतों का सरकारी डेटा हासिल किया.हर शहर में इस अवधि के दौरान केवल तीन से सात साल की दैनिक मृत्यु का डेटा ही उपलब्ध कराया गया. इन शहरों में कुल मिलाकर 36 लाख से से अधिक मौतों की जांच-पड़ताल की गई. इस दौरान जब सभी 10 शहरों के आंकड़े एक साथ लिए गए तो पता चला कि पीएम 2.5 के स्तर में 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर की बढ़ोतरी से मौतों की दर 1.42 फीसदी बढ़ गई.
हर शहर में मौतों के आंकड़ो में काफी विविधता थी.दिल्ली में मौतों में बढ़ोतरी केवल 0.31 फीसदी हुई, जबकि बंगलुरु में यह बढ़ोतरी 3.06 फीसदी थी. इसका मतलब यह हुआ कि कम प्रदूषित शहरों में रहने वाले लोगों के मौत की संभावना अधिक है, जबकि अधिक प्रदूषित शहरों में रहने वाले लोगों में इसकी आशंका कम है.
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