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केरल के लिए सात सौ करोड़ के जुमले का सच

Akhilesh Sharma

फ़र्जी खबरों पर खूब बहस होती है. ये ख़बरें कहां से आती हैं, कौन लाता है, कौन फैलाता है, इस पर खूब बात होती है. लेकिन इस तरह की गलत खबरें जब सरकारों को लेकर हों और उनका पर्दाफाश होने में कई-कई दिन लग जाएंतो मंसूबों पर शक होना तो लाजिमी है. मैं बात कर रहा हूं केरल बाढ़ पर विदेशी मदद को लेकर आई ख़बर की. आप जानते हैं पिछले चार दिनों से हंगामा मचा हुआ है कि जब संयुक्त अरब अमीरात ने केरल में बाढ़ राहत के लिए सात सौ करोड़ की पेशकश की तो भारत ने इनकार क्यों किया? केंद्र सरकार ने सिर्फ 600 करोड़ रुपयों की मदद दी जबकि एक विदेशी मुल्क यूएई सात सौ करोड़ दे रहा है तो उसे क्यों ठुकराया जा रहा है. केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया गया. उस पर विपक्ष के शासन वाले एक राज्य के साथ सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगाया गया. लेकिन हकीकत क्या है? सबने बोला कौवा कान लेकर भाग गया. सब कौवे के पीछे भागे. किसी ने यह नहीं देखा कि कान अपनी जगह पर है या नहीं. इस मामले में शायद ऐसा ही हुआ.

यूएई के दिल्ली में राजदूत अहमद अल्बाना ने एनडीटीवी से कहा कि उनके मुल्क ने केरल बाढ़ पर सहायता के लिए कोई रकम तय नहीं की है. उन्होंने कहा कि एक राष्ट्रीय समिति बनाई गई है जो केरल बाढ़ के पीड़ितों की मदद के लिए स्थानीय प्रशासन और भारतीय विदेश मंत्रालय के साथ काम करेगी. बाढ़ राहत के लिए किसी रकम का ऐलान अभी तक नहीं किया गया है.

तो अल्बाना के बयान से साफ हो गया कि यूएई ने अभी तक किसी रकम का ऐलान नहीं किया. फिर यह सात सौ करोड़ रुपये का आंकड़ा आया कहां से? किसने इसकी शुरुआत की? थोड़ा पीछे जाने पर पता चला कि 21 अगस्त को केरल के मुख्यमंत्री ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसका ऐलान किया था. उन्होंने पीएम मोदी के एक ट्वीट का हवाला दिया था और केरल के एक कारोबारी एमए यूसुफ अली का जिक्र किया था.

18 अगस्त को पीएम मोदी ने अपने ट्वीट में मदद की पेशकश के लिए यूएई का शुक्रिया अदा किया था. रकम की बात इसमें भी कहीं नहीं थी. वहीं विजयन के मुताबिक उन्हें यूएई की मदद की जानकारी केरल के एक कारोबारी एमए यूसुफ अली से मिली. यूसुफ अली लुलु सुपरमार्केट चलाते हैं. विजयन का कहना है कि जब यूसुफ अली यूएई के शहजादे मोहम्मद बिन अल अहीम को ईद की मुबारकबाद देने के लिए मिले तब उन्हें शहजादे ने सात सौ करोड़ की राहत वाली बात बताई. इसके बाद से यूसुफ अली का कोई बयान नहीं आया है. दिलचस्प बात है कि उसी दिन जब विदेश मंत्रालय से यूएई की राहत के बारे में पूछा गया तो प्रवक्ता ने कहा कि पुनर्वास का काम घरेलू प्रयासों से होगा. इसके बाद केंद्र सरकार की आलोचना की गई कि वह यूएई की मदद स्वीकार क्यों नहीं करना चाहती है. अब राजदूत के बयान से साफ हो गया कि यूएई की ओर से कोई रकम घोषित ही नहीं की गई थी. यानी पूरा विवाद बेवजह खड़ा किया गया. विवादों के बीच गृह मंत्रालय ने कल रात को एक बयान में कहा कि केंद्र की ओर से जो छह सौ करोड़ रुपये दिए गए वह शुरुआती मदद भर है. एनडीआरएफ नुकसान का जायजा लेगा और उसके बाद अतिरिक्त रकम दी जाएगी.

लेकिन विवाद अभी थमने का नाम नहीं ले रहा. केरल सरकार यूएई की तथाकथित पेशकश को ठुकराने की वजह से केंद्र से बेहद खफा है. केरल के वित्त मंत्री थॉमस इज़ाक ने एक ट्वीट कर कहा कि हमने केंद्र सरकार से 2200 करोड़ मांगे. उन्होंने हमें सिर्फ 600 करोड़ दिए. हमने किसी विदेशी सरकार से मदद नहीं मांगी लेकिन यूएई ने खुद ही 700 करोड़ की पेशकश की, केंद्र ने कहा नहीं. विदेशी मदद हमारी गरिमा के खिलाफ.

सीपीएम नेता बृंदा करात ने एनडीटीवी डॉट काम पर लिखा कि सरकार बताती है कि 2004 में मनमोहन सिंह सरकार ने सुनामी के बाद विदेशी मदद न लेने का फैसला किया था. लेकिन तत्कालीन एनएसए शिवशंकर मेनन ने ट्वीट कर कहा कि विदेशी मदद बचाव के लिए लेने पर रोक थी, पुनर्वास के लिए नहीं. बृंदा करात के मुताबिक मौजूदा सरकार का एक नीति दस्तावेज़ नेशनल डिज़ास्टर मैनेजमेंट प्लान है जो पीएम नरेंद्र मोदी ने 16 मई 2016 को जारी किया था. इसमें लिखा गया है कि सरकार आपदा के समय किसी विदेशी मदद की अपील नहीं करेगी. लेकिन कोई अन्य देश अगर पीड़ितों की मदद करना चाहे तो सरकार उसे स्वीकार कर सकती है. इस बीच केंद्रीय मंत्री के जे अल्फांस ने कहा है कि उन्होंने सरकार से विदेशी मदद स्वीकार करने की अपील की है. उधर केरल बीजेपी के अध्यक्ष श्रीधरन पिल्लई का कहना है कि यूएई ने किसी मदद की पेशकश नहीं की. यह सीपीएम का फैलाया गया सबसे बड़ा झूठ है.  बीजेपी का यह भी कहना है कि आपदा को लेकर राजनीति नहीं होनी चाहिए.

सवाल उठता है कि आखिर सात सौ करोड़ रुपए की बात फैलाने का मकसद क्या था? आपदा के समय दूसरे देशों के प्रमुखों के संदेश और मदद की पेशकश आम बात है. जब नेपाल में भूकंप आया तो भारत ने मदद के लिए हाथ बढ़ाया. लेकिन तब भारत में ही एक वर्ग ने सरकार की इस बात के लिए आलोचना की थी कि उसने इस मदद को लेकर सार्वजनिक रूप से क्यों कहा? लेकिन जब यूएई की मदद का जिक्र होता है तो इसमें जानबूझकर सात सौ करोड़ रुपये की बात जोड़ दी जाती है. क्या यह आपदा का राजनीतिकरण कर नीचा दिखाने की कोशिश नहीं है? बेहतर होता कि बात इस पर की जाए कि राहत शिविरों में रह रहे लाखों परिवारों को किस तरह बेहतर ढंग से राहत पहुंचाई जाए और उनका पुनर्वास किया जाए.


(अखिलेश शर्मा NDTV इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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