ख़तरा आपके फेफड़े को है, मगर बीमार भेजा नज़र आ रहा है. दिल्ली की हवा को लेकर जो बातें हो रही हैं वो बेहद निराश करने वाली हैं. दिल्ली की बहस को शेष भारत के शहरों में प्रदूषण झेल रहे लोग इस तरह देख रहे हैं जैसे किसी ने हवा में जलेबी टांग दी हो कि टूट कर गिरेगी तो मेरठ और बनारस वालों को भी मिलेगी. जलेबी रेस याद है आपको. तो दिल्ली में भी कोर्ट के आदेश, मंत्रियों के बयान और अख़बारों में छपे लेख कुछ नहीं कर सके. ऐसा नहीं था कि इस साल ही हवा के खराब होने की ख़बर आई. ज़रूर इस साल यानी 4 नवंबर को दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स 497 है. तीन साल में सबसे अधिक. 32 स्टेशन का औसत है. होना चाहिए 50 से कम लेकिन 497 है. 2016 में दिल्ली 5 एयर मानिटरिंग स्टेशन थे. अब 32 हैं. 31 मार्च 2015 का इंडियन एक्सप्रेस. तब एक्सप्रेस ने ख़राब हो चुकी हवा को लेकर अपनी तरफ से पड़ताल की थी. एक्सप्रेस की हेडलाइन थी कि सात साल पहले सबने देखा, कैसे दिल्ली की हवा जानलेवा रुख़ बदल रही है मगर किसी ने कुछ नहीं किया. अनिरुद्ध घोषाल और पृथा चैटर्जी की रिपोर्ट अब हवा हो चुकी है मगर मेहनत से की गई इस रिपोर्ट में दिल्ली में हुए 15 अध्ययनों के आधार पर कहा था कि 1998 में सीएनजी लागू होने के बाद दिल्ली की हवा को जो फायदे हुए थे वो गायब होने वाले हैं. मगर किसी ने ध्यान नहीं दिया. यानी दिल्ली में हवा का खराब होना 2008 में ही शुरू हो चुका था.
इस रिपोर्ट में वल्लभ भाई पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट के आंकड़े के अनुसार 2003-04 में ओपीडी केस की संख्या 51,694 हो गई थी जो 2006-7 में घट कर 47,887 हो गई थी. लेकिन 2013-14 में 65,122 हो गई. इतनी अधिक कभी नहीं हुई थी. तब शीला दीक्षित ने कहा था कि कई तरह की लॉबी है. उन लॉबी से गुज़रना पड़ा था. इसी रिपोर्ट के अगले दिन यानी 1 अप्रैल 2015 के एक्सप्रेस में एक और रिपोर्ट छपी. इस रिपोर्ट में बताया गया कि दिल्ली के सरदार पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट के आईसीयू में वायु प्रदूषण से बीमार मरीज़ों की संख्या 11 गुना बढ़ गई है. एम्स के रेसपिरेटरी डिपार्टमेंट की ओपीडी में 2005-06 के मुकाबले 2014-16 में 300 प्रतिशत बढ़ गया था. मजबूर हो कर एम्स को 2013 में अलग से रेसपिरेटरी डिपार्टमेंट बनाना पड़ा क्योंकि उसके पहले चेस्ट डिपार्टमेंट में ही इलाज होता था.
इसलिए एक्सप्रेस की हेडलाइन लगाई, लीव डेल्ही. दिल्ली छोड़ दीजिए. इस रिपोर्ट में बताया गया कि 9-10 साल के बच्चे के फेफड़े इतने कमज़ोर हो चुके हैं जैसे दनादन सिगरेट पीने वालों के फेफड़े हुआ करते हैं. लोगों को गंभीर बीमारियों होने लगी हैं. सांस का सिस्टम कमज़ोर होने लगा है. एक डॉक्टर का बयान छपा है कि पहले किसी भी उम्र में उम्मीद करते थे कि फेफड़ा 80 फीसदी काम कर रहा होगा तो अब वायु प्रदूषण के कारण 60 प्रतिशत ही काम करता है. बच्चों के डॉक्टर ने इसी रिपोर्ट में कहा था कि गिनती नहीं है कि कितने बच्चों के लिए मेडिकल सर्टिफिकेट लिखे हैं. इसलिए आपको 2015 के साल ले गया ताकि पता चले कि यह स्थिति आज पैदा नहीं हुई है.
2015 में ही सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी कि दिल्ली में हर साल दस से तीस हज़ार लोग वायु प्रदूषण के कारण मर जाते हैं. ये 2019 है. इतनी सीरीयस रिपोर्ट के बाद भी हम करीब करीब ज़ीरो की स्थिति पर खड़े हैं. यही नहीं एक साल बाद 2016 में वायु प्रदूषण इतना खतरनाक हो गया जो कभी 17 साल में नहीं हुआ था. याद दिलाना ज़रूरी है कि ताकि आप सवाल कर सकें कि आज जो आप देख रहे हैं वही नौटंकी देख रहे हैं या इसमें इस बार नई नौटंकी आई है.
2015 से चलकर आप 2019 के नवंबर में आइये, आपको पता चलेगा कि बातें हो रही हैं. कोई इस पर बहस नहीं कर रहा है कि प्रदूषण को रोकने या पर्यावरण के लिए बने नियमों को लागू करने के लिए दिल्ली सरकार के पास ज्यादा अधिकार है या केंद्र सरकार के पास. बात दिल्ली की हो रही है लेकिन दिल्ली में ही कुछ नहीं हो रहा है. फेफड़ा आपका है और वो वोट देने नहीं जाता है. वो खराब होता है तो आईसीयू में जाता है जहां नेता नहीं आता है. मंत्री नहीं आता है. बनारस का हाल देखिए. यहां पीएम 2.5 का लेवल 500 पहुंच गया. 25 से कम होना चाहिए. प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र है. क्या बनारस में पराली जल रही है, सोमवार को यहां चार बजे पीएम 2.5 479 हो गया.
प्रधानमंत्री मोदी अभी बैंकाक में है जहां 2019 में जब एयर क्लाविटी इंडेक्स 170 पहुंचा था तब वहां 400 से अधिक स्कूल एक हफ्ते के लिए बंद कर दिए गए. थाईलैंड के प्रधानमंत्री ने बैंकाक के गवर्नर से कहा था कि नोटिस निकालकर स्कूलों को बंद कर दें. लोगों को खून की खांसी आने लगी थी. याद रखें बैंकाक में एयर क्वालिटी इंडेक्स 170 के पार पहुंचा था. बनारस में सोमवार का एयर क्वालिटी का इंडेक्स 362 है. बिहार की महान राजधानी पटना का एयर क्वालिटी इंडेक्स 382 है. दिल्ली में क्रिकेट मैच हो रहा था जब एयर क्वालिटी इंडेक्स कई जगहों पर 999 था. औसत 494 हो गया था. जो 6 नवंबर 2016 के बाद सबसे अधिक औसत रिकार्ड किया गया. कायदे से दिल्ली बंद हो जानी थी मगर लोग क्रिकेट का मैच देख रहे थे. फेफड़े के लिए खराब हवा में मैच देखने वाली जनता से हम उम्मीद कर रहे हैं वो जागरुक हो गई है. क्रिकेट स्टेडियम में पहुंच कर जनता ने बता दिया कि जिस तरह से सरकार को फर्क नहीं पड़ता है उस तरह से हमें भी नहीं पड़ता है. दुनिया का कोई और देश होता तो सबके फेफड़े की जांच हो रही होती. सरकार नोटिफिकेशन देती है कि देर शाम बाहर कोई गतिविधि न करें, मगर शाम को क्रिकेट मैच होता है.
जब नेता आपको हिन्दी में बरगलाएं तो उसे हिन्दी में ही समझने का प्रयास कीजिए. इस सवाल को सिर्फ दिल्ली के स्तर पर मत देखिए. उन शहरों का भी हिसाब रखिए जहां का एयर क्वालिटी इंडेक्स दिल्ली जितना ही खराब है. रविवार के आंकड़े के अनुसार भारत के जो दस प्रदूषित शहर है उनमें से सात यूपी के हैं. सोमवार को कानपुर में एयर क्वालिटी इंडेक्स 435 हो गया. बनारस से भी अधिक. दोपहर 12 बजे से लेकर 4 बजे तक पीएम 2.5 500 था. कायदे से कानपुर बंद हो जाना चाहिए था. मार्च के महीने में एक रिपोर्ट आई थी कि दुनिया के सबसे प्रदूषित 10 शहरों में से सात भारत के थे. इनमें से छह शहर दिल्ली के आस-पास के थे. गुरुग्राम, गाज़ियाबाद, फरीदाबाद, भिवाड़ी और नोएडा. तब हमने क्या कर लिया था. 4 नवंबर को फरीदाबाद का एयर क्वालिटी इंडेक्स 397 है जो बहुत खराब है. बागपत दिल्ली से 55 किमी दूर है वहां पर एयर क्लालिटी इंडेक्स 500 हो गया था.
यही नहीं भारत ने पीएम 2.5 मापने का जो पैमाना तय किया है वो दुनिया में काफी ख़राब माना जाता है. इसके बाद भी हमारी हालत खराब है. कहीं ऐसा न हो कि सरकार पीएम 2.5 तय करने का मानक ही बढ़ा दे और हालात को सामान्य घोषित कर दे. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पीएम 2.5 का मानक एक क्यूबिक मीटर हवा में दस माइक्रो ग्राम पीएम 2.5 से ज्यादा नहीं होना चाहिए. अमरीका में यह 12 माइक्रो ग्राम है और ज़्यादातर विकसित और विकासशील देशों में एक क्यूबिक मीटर हवा में दस माइक्रो ग्राम पीएम 2.5 के आस पास ही मानक तय हैं. भारत में एक क्यूबिक मीटर हवा में 40 ग्राम पीम 2.5 मान्य है. यानी WHO के पैमाने से तो हवा का स्तर और भी खराब है.
दिल्ली और आस पास की सरकारें दावा करती हैं कि उन्होंने ये किया वो किया लेकिन सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान उठे सवालों और कोर्ट की टिप्पणियों से पता चलता है कि अगर कुछ हुआ ही होता तो कोर्ट को यह न कहना पड़ता है कि अब जीने का अधिकार दांव पर है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इस तरह के वातावरण में नहीं रह सकते हैं. हम सब अपने जीवन का हिस्सा खोते जा रहे हैं. ये मानवता को नष्ट कर रहा है. ये जीने के अधिकार का उल्लंघन कर रहा है. पराली पर कैसे काबू पाया जा सकता है. दिल्ली में कचरा जलाने की भी बड़ी समस्या है. ज़िम्मेदार लोगों की पहचान ज़रूरी है. उनसे हमारी कोई सहानुभूति नहीं है. हालात इमरजेंसी से बदतर हैं. इससे बेहतर तो इमरजेंसी अच्छी है. लोग मर रहे हैं, चिल्ला रहे हैं.
कोर्ट ने एक लाइन में यह बात कहकर टीवी की बहस खत्म कर दी कि विभिन्न राज्य सरकारें और सरकारी निकाय प्रदूषण को नियंत्रित करने में असफल रही हैं. सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं किया जाता है. जब कोर्ट के आदेश का ही पालन नहीं हो रहा है तब फिर हम बहस ही क्यों कर रहे हैं. अच्छा होता सुप्रीम कोर्ट इसके लिए भी किसी को निजी तौर पर जिम्मेदार ठहराता जिस तरह से पराली जलाने के मामले में ग्राम प्रधान को निजी तौर पर जिम्मेदार ठहराया है. काश निजी तौर पर जिम्मेदार पर्यावरण मंत्री और सचिव को भी ठहराया जाता. बहरहाल कोर्ट ने कहा कि पराली जलाने के लिए कोई भी किसान संरक्षण नहीं मांग सकता है. मुख्य सचिव, ज़िला कलक्टर, तहसील, पुलिस अफसर सबकी जिम्मेदारी है कि पराली नहीं जले. एसएचओ और ग्राम प्रधान पराली जलाने वालों की लिस्ट बनाएंगे. ग्राम प्रधान भी निजी तौर पर ज़िम्मेदार होगा.
दिल्ली सरकार से भी सुप्रीम कोर्ट ने सख्त सवाल किए. पूछा कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए कुछ नहीं किया. 3000 बसें लाने की बात कही गई थी मगर आईं 300. एयरपोर्ट के मेट्रो में कोई सफर नहीं करता. सुप्रीम कोर्ट ने ऑड-ईवन को लेकर तर्क और आंकड़े की मांग की है. पहले के सम-विषम स्कीम के आंकड़ों का ब्यौरा क्या है. कार पूल यानी एक कार में चार लोग यात्रा करें तो सरकार को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए. एमिकस क्यूरी अपराजिता सिंह ने कहा कि दिल्ली में इंडस्ट्री और खुले में कचरा जलाने से 60 प्रतिशत प्रदूषण होता है और कोर्ट के आदेश के बावजूद निर्माण कार्य चलता रहता है. बिजली चले जाने से जब जनरेटर चलता है तो धुआं निकलता ही है. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली एनसीआर में अगले आदेश तक के लिए डीज़ल जनरेटर पर बैन लगा दिया है. निर्माण कार्य पर रोक लगा दी है. कोर्ट ने कहा है कि दिल्ली पंजाब हरियाणा और यूपी में बिजली न कटे ताकि लोग जनरेटर इस्तमाल न करें.
आईआईटी कानपुर की एक रिपोर्ट है. दिल्ली में कोयले से जलने वाले तंदूर से भी प्रदूषण फैलता है. 2015 में ही अधिवक्ता सुधीर मिश्रा ने दिल्ली हाई कोर्ट में इन सवालों को लेकर याचिका दायर की थी. सुप्रीम कोर्ट के आदेश तो हाल फिलहाल के लिए हैं. जब हालात बिगड़ गए हैं तब आए हैं. क्या अगले साल भी ऐसा ही होगा. दिल्ली से बाहर के शहरों के लिए क्या है. क्या फेफड़ा सिर्फ दिल्ली के लोगों में होता है? क्या हवा सिर्फ पराली के कारण खराब होती है. हमसे एक शख्स मिलने आए थे. मिर्ज़ा आरिफ़. उनका कहना है कि हमारी कारों के टायर हैं उनसे भी प्रदूषण भयानक होता है. टायर का रबर घिस कर सांसों के ज़रिए फेफड़े में जाता है तो वहां गड्ढे कर देता है.
इस बहस में एक और सवाल बनता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हवा खराब है. जीने के अधिकार का उल्लंघन हो रहा है. तब कोर्ट को यह आदेश देना चाहिए कि सरकारें हर उस नागरिक को एयर प्यूरिफायर का पैसा वापस करें जिन्हें मजबूरन खरीदना पड़ा. सरकार की नाकामी के कारण ही लोगों को दस से तीस हज़ार के एयर प्यूरीफायर खरीदने पड़े हैं. कोर्ट आंकड़ा मांगे कि नवंबर के पहले हफ्ते में सिर्फ दिल्ली में कितने सौ करोड़ के एयर प्यूरीफायर बिके हैं. कम से कम कोर्ट को पता चलेगा कि सरकार की नाकामी की कीमत जनता ने अपनी जेब से कितनी चुकाई. कुछ होना तो नहीं कम से कम पैसे ही वापस मिल जाएं.
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Monday November 15, 2021केवल नौकरशाही और मीडिया का विभाजन नहीं हुआ है बल्कि प्रदूषण का भी हुआ है. भूगोल और मौसम के हिसाब से प्रदूषण की चिन्ताओं को बांट दिया है और उसे सीबीआई और ईडी के अफसरों की तरह विस्तार देते रहते हैं. जिस तरह अब सीबीआई के प्रमुख तक पांच साल के लिए मेवा विस्तार मिलेगा सॉरी सेवा विस्तार मिलेगा उसी तरह से वायु प्रदूषण को हर नवंबर के बाद अगले नवंबर के लिए विस्तार मिल जाता है.
From The 'World's Air Pollution Capital' To COP26Chetan Bhattacharji
Sunday October 31, 2021Prime Minister Narendra Modi flew out of Delhi for the climate talks just as the capital's skies darkened with pollutants in this peak air pollution season.