हमारा दो घंटे का समय बर्बाद हुआ. चीफ जस्टिस एन वी रमना की यह टिप्पणी ज़हरीली हवा को लेकर होने वाली सारी सुनवाइयों का सार है. आज और सोमवार की नहीं, बल्कि हवा में फैल रहे ज़हर को लेकर पिछले पांच छह साल में सुप्रीम कोर्ट की जितनी भी सुनवाई हुई है उसका यही सार है. लोग मर गए मगर सरकारों ने तरह तरह के आंकड़ों और आरोप प्रत्यारोपों से सुनवाई को इतना उलझा दिया कि सब बर्बाद हो गया. देश की सर्वोच्च अदालत की टिप्पणी उन सरकारों के काम के बारे में है जिनके अरबों रुपये के विज्ञापनों के प्रोपेगैंडा के जाल में फंस कर रिश्तेदार, दोस्त, मोहल्ला औऱ देश आपस में भिड़ा हुआ है. आज सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान पांच पांच सरकारों के काम की पोल खुल गई. पूरी बहस के दौरान आपको उद्योग धंधों के द्वारा फैलाए जा रहे प्रदूषण, कार बसों के द्वारा फैलाए जा रहे प्रदूषण पर कम आवाज़ सुनाई देगी. इस तरह से सुप्रीम कोर्ट का दो घंटा बर्बाद हो गया. इसमें आप प्राइम टाइम का आधा घंटा भी जोड़ लीजिए और इसकी तैयारी में लगे आठ दस घंटे भी. वो सब बर्बाद होने जा रहा है. क्योंकि कल सरकार का कुछ और मसले पर विज्ञापन आ जाएगा कि ऐतिहासिक काम किया जा रहा है.
आज की सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच की बेचैनियां साफ झलक रही थीं. जो दिख रहा था उसे जजों ने जनता के लिए कह दिया कि वह भी देख ले. जान ले कि अदालत के फटकारों, निर्देशों, निवेदनों और सुझावों का कोई असर नहीं हो रहा है. चीफ जस्टिस एन वी रमना को कहना पड़ा कि नौकरशाही ने एक किस्म की जड़ता विकसित कर ली है. वे चाहते हैं कि सब कुछ अदालत के द्वारा किया जाए. पानी का छिड़काव, आग रोकना, सब अदालत करे. कार्यपालिका की ओर से यह दुर्भाग्यपूर्ण है. हमारा दो घंटे का समय बर्बाद हुआ. चीफ जस्टिस अलग अलग आंकड़ों, आरोप-प्रत्यारोपों पर बिफरते हुए कहते रहे कि मुद्दों को घुमाने की कोशिश नहीं होनी चाहिए. प्रदूषण कम होना चाहिए. उनकी मंशा किसानों को दंडिट करने की नहीं है. अदालत बार बार कहती रही कि पराली जलाने के नाम पर जवाबदेही किसानों पर शिफ्ट नहीं होनी चाहिए. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि पांच सितारा होटल के एसी रूम में बैठकर किसानों को दोष देना आसान है. बेंच में शामिल जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा ये उदासीनता है, सिर्फ़ उदासीनता. चीफ जस्टिस ने कहा क्या आप इस बात से इंकार कर सकते हैं कि पिछले पांच छह दिनों में इतने पटाखे फोड़े जा चुके हैं. उन्होंने यह भी कहा कि कोई बताए कि सरकार साल भर क्या करती है. तीनों जजों के सवाल दीवार बन चुकी सरकारों से टकरा कर उन्हीं के पास लौट रहे थे. कोर्ट का दो घंटा बर्बाद हो गया.
नौकरशाही और सरकार अदालत के पीछे छिपने लगी हैं. शाहीन बाग के समय भी सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने ऐसा ही कहा था कि प्रशासन को ज़िम्मेदारी के साथ काम करना चाहिए. उसे अदालत के आदेशों के पीछे नहीं छिपना चाहिए. मगर जो खेल चल रहा है खासकर आम लोगों के जीवन से जुड़े सवालों को लेकर उससे साफ है कि सरकार अपनी नाकामी और नहीं करने के लिए इरादे को छिपाने के लिए अदालत की सुनवाई और तारीखों का सहारा ले रही है. अदालत का वक्त वर्बाद कर रही है और आपकी आंखों में धूल झोक रही है.
ठीक यही हो रहा था जब ऑक्सीजन की कमी को लेकर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट सवाल कर रहे थे, दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार एक दूसरे को लेकर आरोप लगा रहे थे, कोर्ट नेशनल टास्क फोर्स बना रहा था. इस तरह सुनवाई और फटकार में पूरा संकट निकल गया और अंत में सरकार ने कह दिया कि ऑक्सीजन की कमी से कोई नहीं मरा. आप टीके को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हुई बहस को याद कीजिए. कोर्ट के सवालों के सामने सरकार के जवाब ढीले पड़ गए थे. कितना टीका है, कितना बजट है, कुछ को पैसे लेकर कुछ को मुफ्त टीका, इन सबको लेकर जब सवाल पूछा गया तब जाकर टीकाकरण का होश आया. उसके पहले यही सरकार कहती थी कि सबको टीके की ज़रूरत नहीं है. मज़दूरों के पलायन के समय भी यही हुआ. सुनवाई होती रही और मज़दूर पैदल चलते रहे, मरते रहे. संकट निकल गया, सुनवाई निकल गई. ऑक्सीजन के समय दिल्ली हाई कोर्ट ने इनफ इज़ इनफ कहा था, वायु प्रदूषण के समय सुप्रीम कोर्ट इनफ इज़ इनफ कह रहा है.
अदालत सख्त हो रही है लेकिन सरकारें ढीठ होती जा रही हैं. इस रणनीति को समझिए तो ठीक नहीं तो कोई बात नहीं. एक दिन सरकार कह देगी कि वायु प्रदूषण से कोई नहीं मरता है. कितने लोग वायु प्रदूषण से मर रहे हैं सरकार ने इसका भी कोई विस्तृत अध्ययन नहीं कराया है. लोकसभा में चार चार सांसदों ने पूछा था कि भारत में हर साल 15 लाख लोग मर जाते हैं क्या यह सही है, इसके जवाब में पर्यावरण राज्य मंत्री अश्विनी चौबे कहते हैं कि वायु प्रदूषण, सांस की बीमारी को बढ़ा देता है लेकिन इसका कोई ठोस डेटा नहीं है जिससे हम स्थापित कर सकते कि मौत या बीमारी का सीधा संबंध वायु प्रदूषण से है.
जबकि इसी दिल्ली के गंगाराम अस्पताल के डाक्टर अरविंद कुमार दो साल पहले से कह रहे हैं कि उनके यहां लंग्स कैंसर के मरीज़ों की संख्या बढ़ती जा रही है. बीस साल पहले सिगरेट पीने वाले मरीज़ों की संख्या 90 प्रतिशत हुआ करती थी लेकिन अब जो सिगरेट नहीं पीते हैं उनकी संख्या सिगरेट पीने वाले मरीज़ों के बराबर हो चुकी है. अगर नॉन स्मोकर के बीच लंग्स कैंसर का एक कारण वायु प्रदूषण भी है. आप की ज़िंदगी पर कैंसर का कहर टूट रहा है और सरकार कहती है कि ठोस डेटा नहीं है जिससे स्थापित कर सकेते कि मौत या बीमारी का सीधा संबंध वायु प्रदूषण से है.
मेडिकल जर्नल लांसेट की एक रिपोर्ट है कि 2019 के साल में भारत में वायु प्रदूषण से 17 लाख लोग मर गए. इस बारे में पिछले साल दिसंबर के अंक में डाउन टू अर्थ ने लिखा था कि दो लाख 60 हज़ार करोड़ का आर्थिक नुकसान हुआ है. 2020-21 के केंद्र के स्वास्थ्य बजट का चार गुना. किसी अन्य रिपोर्ट में एक साल में वायु प्रदूषण से मरने वालों की संख्या एक लाख से अधिक भी बताई गई है. लेकिन सरकार के पास कोई डेटा नहीं है.
हाल ही में European Environment Agency की रिपोर्ट छपी है. यूरोपीयन यूनियन के तहत यह एक स्वायत्त संस्था है. इसकी रिपोर्ट के अनुसार यूरोप भर में वायु प्रदूषण से 2019 में 3 लाख से अधिक लोग मर गए. ज़ाहिर है वहां मौत या बीमार का वायु प्रदूषण से संबंध स्थापित किया जा सका होगा तभी यह रिपोर्ट आई होगी तो भारत में क्यों नहीं किया गया. 2020 की रिपोर्ट है बीबीसी की, कि यूरोप में आठ मौतों में से एक का संबंध वायु प्रदूषण से है. क्या ये सारी रिपोर्ट हवा में बनाई जा रही हैं.
राज्यसभा और लोकसभा में दिए गए सरकार के जवाबों को देखिए पता चलेगा कि न तो प्रदूषण से मरने वालों की संख्या का डेटा है, न इस बात का डेटा है कि एयर प्यूरिफायर कारगर हैं या नहीं. इसका भी डेटा नहीं है कि धूम्रपान नहीं करने वाले कितने लोगों को लंग्स कैंसर हो रहा है. किसी चीज़ का डेटा नहीं है मगर डेटा पर प्रधानमंत्री कहते हैं कि डेटा ही इंफोर्मेशन है. तब क्यों नहीं इसका डेटा है कि ज़हरीली हवा से कितने लोग मर रहे हैं, कितने लोगों को लंग्स कैंसर हो रहा है.
डेटा डिक्टेट कर रहा है लेकिन वही डेटा डिक्टेट कर रहा है जिससे सरकार आपको डिक्टेट करना चाहती है. जब आप सरकार से अपना डेटा मांगते हैं तो सरकार के पास आपके सवालों का डिक्टेटशन लेने वाला भी कोई नहीं होता है. सांसद आर के सिन्हा के एक सवाल पर सरकार कहती है कि Wind Augmentation and Purification Units जो दिल्ली में प्रदूषण रोकने के लगे हैं उनकी क्षमता बहुत ज्यादा नहीं है. PM 2.5 के मामले में इनकी क्षमता 25 प्रतिशत भी नहीं है. सरकार के पास भले डेटा नहीं है लेकिन डेटा जनता के बीच है.
अमर उजाला की एक रिपोर्ट में पूरे गाज़ियाबाद में सांस की तकलीफ के कारण आने वाले मरीज़ों का एक आंकलन पेश किया गया है. इस रिपोर्ट के मुताबिक ज़िले भर में हर दिन 700-900 मरीज़ आ रहे हैं. पहले 100 मरीज़ आते थे. एक ज़िले में ऐसे मरीज़ों की संख्या 4263 से अधिक हो चुकी है. चंद दिन पहले इसी अखबार की यह रिपोर्ट है तब मरीज़ों की संख्या 1000 लिखी गई है यानी कुछ दिनों में 3000 मरीज़ बढ़ गए. ये केवल एक ज़िले की रिपोर्ट है.
अमर उजाला का यह डेटा पूरे ज़िले का है. राजीव रंजन गाज़ियाबाद के ज़िला अस्पताल गए यानी एक अस्पताल गए वहां के भी प्रमुख ने कहा कि वायु प्रदूषण के कारण सांस के मरीज़ों की संख्या 30-40 प्रतिशत बढ़ गई है. ज़्यादातर ग़रीब लोग हैं.
आज की सुनवाई में हर सरकार के पास थोड़ा थोड़ा जवाब था. पंजाब और हरियाणा के पास एक ही जवाब था. पराली न जलाने का अनुरोध किया गया है और वर्क फ्राम होम किया गया है. ज़ाहिर है वायु प्रदूषण को रोकने के लिए यही दो उपाय काफी नहीं हैं.
पंजाब के खेतों में इसी महीने खूब पराली जलाई गई है. गुरमेल सिंह का कहना है कि धान की खेती की लागत काफी बढ़ गई है. एक एकड़ में पराली हटाने के लिए बीस लीटर डीज़ल लगेगा जो काफी महंगा हो चुका है. किसान मजबूरी में पराली जला रहा है. किसानों का कहाना है कि धान की कटाई और गेहूं की बुवाई के बीच बहुत कम समय होता है. सरकार ने जो सब्सिडी वाली मशीन दी है वो सबके पास नहीं हैं. सबके ट्रैक्टर में नहीं है तो किराए पर भी मशीन नहीं मिलती है. लिहाज़ा समय के कारण भी पराली जला देना ही सस्ता विकल्प होता है. नासा ने एक अध्ययन किया है कि इस साल सबसे अधिक पराली जलाई गई है. नासा की एक रिपोर्ट में आग का मानचित्र है उसके हिसाब से इस सितंबर से लेकर अक्तूबर के बीच पंजाब में आग की लपटें ज्यादा देखी गई हैं. इस साल चुनाव के कारण पराली जलाने पर मुकदमे भी नहीं हो रहे हैं. इन तस्वीरों के बाद भी पंजाब सरकार सुप्रीम कोर्ट में यह कहने का दुस्साहस कर सकती है कि पराली नहीं जल रही है, किसानों से दो हफ्ते के लिए पराली न जलाने को कहा गया है. सुप्रीम कोर्ट ने पराली हटाने को लेकर राज्य की जवाबदेही तय करना चाहता है और राज्य बचने का रास्ता निकाल रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार से भी कहा कि आपने किसानों को भगवान की दया पर छोड़ दिया. केंद्र सरकार से भी कहा कि आप सक्षम हैं किसानों को मशीनें दे सकते हैं. पंजाब सरकार स्कूल के छात्रों की तरह कोर्ट में बोल गई कि पंजाब राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में नहीं आता है इस पर सुप्रीम कोर्ट ने ठीक ही पूछा कि तो क्या कदम नहीं उठाएंगे. पंजाब सरकार किस तरह आम जनता के जीवन से खिलवाड़ कर रही है.
पंजाब के कारण भले दिल्ली में प्रदूषण नहीं हो रहा हो लेकिन इसका मतलब नहीं कि पंजाब में प्रदूषण नहीं हो रहा है. आज भी लुधियाना में AQI 227 के करीब था, इसे भी ख़तरनाक ही माना जाता है. ज़ाहिर है प्रदूषण के अन्य कारणों पर न तो इन दो महीनों में कोई गंभीरता दिखती है और उसके बाद तो इन्हें भुला ही दिया जाता है.
लोकसभा, राज्यसभा में केंद्र सरकार के जवाब, इसी सितंबर में PIB की रिलीज़ से पता चलता है कि केंद्र सरकार ने 2018 से 2021 के बीच पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और यूपी में 30,900 ऐसे केंद्र बनाए हैं जहां पर पराली हटाने की डेढ़ लाख मशीनें हैं. किसान यहां से किराये पर ले सकते हैं. जसवीर सिंह जैसे छोटे किसान जिनके पास दो एकड़ की ज़मीन है इन मशीनों को किराए पर भी नहीं ले सकते, कुछ बचेगा नहीं और ज्यादातर किसान इन राज्यों में भी इसी तरह दो तीन एकड़ वाले ही हैं. किसानों का कहना है कि अगर सब्सिडी से भी लें तो भी एक लाख रुपये लग जाएं जो कि किसानों के पास नहीं हैं. यही कारण है कि किसान पराली जलाने पर मजबूर हो रहे हैं. बार बार सुप्रीम कोर्ट कह रहा है कि सरकार जब सक्षम है तो वह कदम क्यों नहीं उठा रही है. केंद्र सरकार ने इसके बदले एक स्कीम बना दी है कि सरकार पचास फीसदी सब्सिडी देगी. इस संकट की स्थिति में भी किसानों से बिजनेस किया जा रहा है, उन पर और खर्चा लादा जा रहा है.
आश्चर्य है कि इन मशीनों के वितरण के लिए अभी तक कोई बड़ा कार्यक्रम नहीं हुआ है और उसमें रफाल विमान का प्रदर्शन नहीं हुआ है. खेत में रनवे नहीं बन सकता लेकिन खेत के ऊपर से मिराज तो उड़ ही सकता है. सरकारें अपने प्रचार का काम तो बहुत शानदार तरीके से कर लेती हैं लेकिन इस ज़हरीली हवा के काम में लापरवाह क्यों नज़र आती हैं.
ट्रैक्टर के सहारे चलने वाली इन मशीनों का हुलिया ही बता रहा है कि आम किसानों के लिए इन्हें खरीदना बस की बात नहीं है और इनका किराया भी सस्ता नहीं हो सकता. हमारे सहयोगी मोहम्मद ग़ज़ाली का कहना है कि पराली की समस्या इसलिए हुई की थ्रेशर मशीनों से धान की जड़ें खेत में छूट जाती हैं. अब इन्हें निकालने के लिए हैप्पी सीडर मशीन बनाई गई लेकिन यह मशीन सभी किसानों को किराये पर भी नहीं मिलती है. इस बीच मशीन आने के कारण हाथ से काटने वाले मज़दूर कम हो गए. अब न मशीन मिल रही है न मज़दूर मिल रहे हैं, लिहाज़ा किसान पहले से अधिक पराली जला रहे हैं. हरियाणा में करीब 9 लाख किसान धान की खेती करते हैं, ज़ाहिर है मशीनों की संख्या अभी बहुत कम है.
वही हाल दिल्ली का भी रहा. दिल्ली में सौ फीसदी वर्क फ्राम होम कर दिया गया है. निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी गई है. इन सब उपायों की लिस्ट दिल्ली के पास ही नज़र आई मगर उसके पास भी कोर्ट के सवालों के कई जवाब नहीं थे. दिल्ली में धूल न उड़े इसके लिए सड़कों पर छिड़काव के लिए मशीनों की ज़रूरत है. आज भी कोर्ट ने पूछा कि आपके पास तो 69 मशीनें ही हैं तो दिल्ली सरकार ने कहा कि दस और खरीदी जा रही हैं. ये मशीनें दस से पचीस लाख की आती हैं लेकिन जब दिल्ली सरकार ने एमसीडी का ज़िक्र किया तो कोर्ट जवाबदेही टालने के इस पैंतरे से नाराज़ हो गया. चीफ जस्टिस ने कहा कि इनफ इज़ इनफ.
जिन लोगों ने पूरा जीवन खपा दिया कि दिल्ली में पब्लिक ट्रांसपोर्ट ही उपाय है, उनका मज़ाक उड़ाया जाता रहा. तब लोगों को लग रहा था कि कार ही विकास है और आज बहस हो रही है कि फेफड़ा खराब हो रहा है. दिल्ली से 300 किमी दायरे में कई सारे थर्मल प्लांट बंद कर दिए गए हैं. स्कूल कालेज बंद कर दिए गए हैं. निर्माण का काम बंद हो गया है इससे कितने गरीब मज़दूरों की कमाई पर असर पड़ा होगा. यानी हम सब सिर्फ बीमार नहीं हो रहे हैं बल्कि कई तरह से इसकी कीमत चुका रहे हैं. इसके बाद भी पब्लिक के बीच यह राजनीतिक मुद्दा नहीं है. दिल्ली सरकार के पास कोर्ट के इस सवाल का ठोस जवाब नहीं था कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट का समाधान कैसे करेंगे.
इलेक्ट्रिक बसों को समाधान के रूप में पेश किया जा रहा है. जिस बिजली से इन्हें चार्ज किया जाएगा वो बिजली कोयले से पैदा होती है जिससे प्रदूषण होता है. कार्बन उत्सर्जन होता है. यही आपको समझना है कि बर्बादी इतनी हो चुकी है कि उसके समाधान के लिए टेक्नालजी के नाम पर भी घुमाया जा रहा है.
लेकिन इसके बाद भी ऐसे उपायों के नाम पर राजनीति हो रही है और पैसा खर्च हो रहा है. यूपी में चुनाव हो तो नोएडा में Air Pollution Control Tower लगा है. हर साल इसके संचालन में 37 लाख का खर्च आएगा. ये पायलट प्रोजेक्ट है. लेकिन इसका उद्घाटन का माहोल बता रहा है कि इस समय यह पोलिटिकल प्रोजेक्ट है. दावा किया जा रहा है कि एक किमी तक की हवा साफ होगी. इसी तरह का किसी और कंपनी का बनाया हुआ दिल्ली के कनॉट प्लेस में लगाया गया है जिसका उद्घाटन अरविन्द केजरिवल ने किया था. 20 करोड़ के इस टावर की चर्चा पूरी बहस के दौरान प्रमुखता से सुनाई नहीं दी. इसी तरह का टावर आनंद विहार में भी लगा है लेकिन वो जगह भी दिल्ली की प्रदूषित जगहों में से एक है. फिर दिल्ली में ही ऐसे 100 स्माग टावर क्यों नहीं लगा दिए गए. कनाट प्लेस में दिल्ली सरकार ने स्माग फैन लगाया. काफी धूम धड़ाका हुआ लेकिन इसका नतीजा क्या निकला. पर्यावरण पर लिखने वाले पत्रकार ह्रदयेश जोशी कहते हैं कि इस तरह के पंखों का कोई खास असर नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने पहल न की होती तो पर्यावरण के सवाल पर सरकारें आपको मरता छोड़ देतीं. कोर्ट ने कितनी कमेटियां बनाईं और सरकारों का अंत अंत तक पीछा किया. ज़हर से लड़ने में वक्त लगता है. गुरुग्राम में नमाज़ को लेकर ज़हर फैलाया जा रहा है. अब उसी गुरुग्राम से लोग इस ज़हर से लड़ने के लिए आगे आए हैं. मुस्लिम समाज को नमाज़ पढ़ने के लिए अपनी जगह दे रहे हैं.
सांप्रदायिकता का ज़हर दिमाग़ में घुस गया है लेकिन कुछ लोग लड़ रहे हैं जैसे कोर्ट लड़ रहा है वायु प्रदूषण से. चीफ जस्टिस ने न्यूज़ चैनलों के डिबेट के संदर्भ में एक बात कही है, जो केवल इस विषय से संबंधित बहस पर लागू नहीं होती है बल्कि टीवी डिबेट के तमाम बहसों से होने वाले प्रदूषण का चेहरा सामने ला देती है. जब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता मीडिया में उनके जवाब को लेकर हो रही बहस पर सफाई देना चाहते थे कि टीवी में इस तरह की बहस हो रही है तब चीफ जस्टिस ने कहा कि “अगर आप कुछ मुद्दों का इस्तमाल करना चाहते हैं, चाहते हैं कि हम टिप्पणी करें और फिर इसे विवादास्पद बनाएं तो केवल आरोप-प्रत्यारोप ही चलता रहेगा. बाकी चीज़ों से कहीं ज्यादा टीवी में होने वाला डिबेट प्रदूषण फैला रहा है. हर किसी का अपना एजेंडा है और वे कुछ नहीं समझते हैं.”
टीवी डिबेट को लेकर सुप्रीम कोर्ट की यह पहली टिप्पणी नहीं है. जस्टिस के एम जोसेफे ने सुदर्शन टीवी के संदर्भ में कहा था कि एंकर की भूमिका देखनी चाहिए. वह अपने असहमति रखने वालों के खिलाफ किस तरह अपमानजनक बातें करता है. कई साल से कह रहा हूं न्यूज़ चैनल का डिबेट कम लागत में भारत के लोकतंत्र को, बात कहने और सुने जाने की परंपरा को बर्बाद कर रहा है. गोदी मीडिया भारत के अर्जित लोकतंत्र की हत्या कर रहा है. इसकी पत्रकारिता के कारण सारी दुनिया में भारत की बदनामी हो रही है और भारत की हवा ज़हरीली हो रही है. टीवी के डिबेट के ज़रिए झूठ और सांप्रदायिकता के ज़हर को फैला दिया गया है. सब कुछ उस हुज़ूर की ख़ातिर है जिनकी हिफाज़त के लिए ये डिबेट कराए जा रहे हैं ताकि सच कहीं से छलक न जाए. हर डिबेट हुज़ूर के लिए है. हुज़ूर ही हुज़ूर हैं. आप खजूर खाइये.
The Union and state governments must stop relegating pollution issues to the background.
The Delhi government on Monday banned the production, sale and use of firecrackers in the national capital to control air pollution in the coming winter season.
Delhi Environment Minister Gopal Rai announced on Thursday that the government will implement a 21-point Winter Action Plan to combat air pollution, featuring real-time drone monitoring of pollution hotspots.
The number of 'good days' referring to air quality, increased from 159 in 2018 to 206 in' 2023, it said.
The problem of pollution in Delhi can only be solved through teamwork, Environment Minister Gopal Rai said on Sunday as he urged the Centre to give permission for artificial rain during winter, when the city's air quality plummets.
................................ Advertisement ................................
Opinion: It Is Delhi's Annual Pollution Season - Who Can Stop This?Bharti Mishra Nath
Monday November 06, 2023Delhi is choking once again. Thick, toxic smog has engulfed the national capital and its surrounding areas, making Delhi the most polluted place in the world.
Blog: Why This Is Already A Landmark Year In The Pollution FightChetan Bhattacharji
Tuesday December 14, 2021The air pollution last month made it the worst November in seven years since records began. This is a setback to the central government's already modest target to cut air pollution by 20-30% by 2024.
सरकारों ने आपके जीवन से खिलवाड़ कर लियाRavish Kumar
Thursday November 18, 2021हमारा दो घंटे का समय बर्बाद हुआ. चीफ जस्टिस एन वी रमना की यह टिप्पणी ज़हरीली हवा को लेकर होने वाली सारी सुनवाइयों का सार है. आज और सोमवार की नहीं, बल्कि हवा में फैल रहे ज़हर को लेकर पिछले पांच छह साल में सुप्रीम कोर्ट की जितनी भी सुनवाई हुई है उसका यही सार है.
किसान नहीं कार और कारखाना वाले फैला रहे हैं हवा में ज़हरRavish Kumar
Monday November 15, 2021केवल नौकरशाही और मीडिया का विभाजन नहीं हुआ है बल्कि प्रदूषण का भी हुआ है. भूगोल और मौसम के हिसाब से प्रदूषण की चिन्ताओं को बांट दिया है और उसे सीबीआई और ईडी के अफसरों की तरह विस्तार देते रहते हैं. जिस तरह अब सीबीआई के प्रमुख तक पांच साल के लिए मेवा विस्तार मिलेगा सॉरी सेवा विस्तार मिलेगा उसी तरह से वायु प्रदूषण को हर नवंबर के बाद अगले नवंबर के लिए विस्तार मिल जाता है.
From The 'World's Air Pollution Capital' To COP26Chetan Bhattacharji
Sunday October 31, 2021Prime Minister Narendra Modi flew out of Delhi for the climate talks just as the capital's skies darkened with pollutants in this peak air pollution season.