क्या योग करने में 11 करोड़ खर्च हो सकते है? शायद आपको लगे इतना खर्च कैसे हो सकता है, निरोग रहने के लिए अनुलोम-विलोम, शीर्षासन ही तो करना है. लेकिन ये खबर सच है. रायपुर के साइंस कॉलेज में 21 जून 2024 को योग अभ्यास कार्यक्रम हुआ था. इस कार्यक्रम में 11 करोड़ से ज्यादा की राशि खर्च कर दी गई, वो भी सिर्फ एक घंटे के कार्यक्रम में. इस प्रोग्राम में मुख्यमंत्री विष्णु देव साय और महिला बाल विकास मंत्री लक्ष्मी रजवाड़े ने योग किया था.
अब ये मत कहिएगा कि योग मुफ्त होता है. ये कोई पार्क में बैठकर अनुलोम-विलोम करने वाला कार्यक्रम नहीं था. ये सरकारी योग था! और सरकारी चीजों में भाव नहीं, बिल लगता है, वो भी 11 करोड़ 32 लाख का. 21 जून 2024, रायपुर के साइंस कॉलेज में हुआ ये ऐतिहासिक योग कार्यक्रम, ऐतिहासिक इसलिए नहीं कि कुछ नया योगासन इजाद हुआ, ऐतिहासिक इसलिए क्योंकि एक घंटे में जितना खर्च हुआ, उतने में किसी छोटे राज्य का स्वास्थ्य विभाग महीने भर चल जाए.
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय और महिला-बाल विकास मंत्री लक्ष्मी रजवाड़े ने योग किया... लेकिन जनता का खिंचाव आसनों में नहीं, आंकड़ों में था।
कभी-कभी लगता है कि सरकारें योग नहीं, 'योगी क्रॉस-फिट' का आयोजन कर रही हैं. और फिर याद आता है कि इसी प्रदेश में एक बार 'बोरेबासी भोज' हुआ था, आठ करोड़ में. जनता ने बासी खाया, सरकार ने ताजा बिल बनाया. मजेदार बात ये कि उस वक्त बीजेपी ने कांग्रेस को घेरा था, और आज कांग्रेस उसी एजेंसी को भ्रष्टाचार का योगाचार्य बता रही है.
कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला कहते हैं कि, 'राम-राम के लूट है, लूट सके तो लूट. विष्णु देव सरकार में यही स्थिति बनी हुई है . इस सरकार में 32,000 रुपये में एक जग खरीदा जाता है, एक दिन में योग सिखाने के लिए 11 करोड़ रुपए खर्च किए कर दिए जाते हैं. 10 लाख रुपये की टीवी खरीदी जाती है. पूरी सरकार भ्रष्टाचार में लिप्त है. बोरेबासी बासी और योग एक ही एजेंसी ने काम किया है. उसकी जांच होनी चाहिए'.
बीजेपी विधायक रिकेश सेन ने कहा कि, 'बोरेबासी में तो भ्रस्टाचार स्पष्ट है. मैं छत्तीसगढ़ी आदमी हूं और गांव में रहता था, तो सुबह-सुबह बासी खाकर तालाब से आकर बासी खाता था. बासी में करोड़ों रुपये खर्च हो नहीं सकते थे. योग के विषय पर जो आपने बताया है कि 11 करोड़ रुपए खर्च हो गए, तो वह एक समझने का विषय हो सकता है. उसमें जांच होनी चाहिए. इस विषय को सदन के संज्ञान में भी लाऊंगा.
सरकार कह रही थी, स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क होता है, लेकिन ये कौन बताएगा कि खाली खज़ाने में कैसे हो सरकारी संतुलनासन? बजट था सिर्फ दो करोड़ का, लेकिन योग ऐसा हुआ कि फेफड़े नहीं, खजाना फूल गया.
सरकारें हर साल योग करवा रही हैं, कराना भी चाहिए, जनता को स्वस्थ रखना जरूरी है. पर सवाल तब उठते हैं जब ताड़ासन करते-करते तिजोरी बैठ जाती है. जब एक घंटे के कार्यक्रम में 11 करोड़ उड़ जाते हैं तो आसन कम और आसमानी खर्चा ज्यादा नजर आता है.
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