NDTV युवा के कार्यक्रम में रैपिडो के सह-संस्थापक पवन गुंटुपल्ली ने युवाओं को बड़ी सीख दी. उन्होंने कहा कि युवाओं को रिस्क लेना चाहिए. फेल होने से डरना नहीं चाहिए. हम गिरते हैं ताकि ऊपर उठ सकें... हमें अपने फेलियर से सीखना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए.
पवन ने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि रैपिडो से पहले 7 बार मेरे आइडिया फेल हो चुके थे. रैपिडो के लिए फंडिंग जुटाने के दौरान 75 बार मुझे रिजेक्ट किया गया. ये सब आसान नहीं था. लेकिन मैंने उन फैक्ट्स पर काम किया कि मैं फेल क्यों हुआ. मैंने उसमें सुधार किया, आगे बढ़ा और आज सफल हूं.
आईआईटी से पढ़ाई के बाद आंत्रप्रेन्योर बनने का आइडिया कैसे आया, इस बारे में पवन गुंटुपल्ली ने बताया कि यूनिवर्सिटी में सेकंड इयर के दौरान मुझे एक किताब मिली, उसमें धीरूभाई अंबानी का जिक्र था. वैसे मैं ज्यादा किताबें नहीं पढ़ता, लेकिन वो किताब मैंने पूरी पढ़ी. उसकी सबसे दिलचस्प बात मुझे ये लगी कि अगर कोई एक भी शख्स ठान ले तो पूरे देश की राह बदल सकता है. उसे पढ़ने के बाद लगा कि मुझे भी कुछ करना चाहिए. कुछ ऐसा, जो हजारों-लाखों लोगों की जिंदगी को प्रभावित करे.
पवन ने अपने पहले आइडिया फेलियर के बारे में बताया कि मैंने अपने पिता के रियल एस्टेट बिजनेस में काम किया था. इस बिजनेस में तब जमीन खरीदने और बेचने का काम सीधे-सपाट तरीके से होता था. तब मैं 22 साल का था. मैंने आइडिया दिया कि क्यों न इसमें टेक्नोलोजी को जोड़ा जाए. जो जमीन या घर हम बेचते हैं, उसमें कुछ हिस्सेदारी रखें. उस समय तो कुछ नहीं हुआ, लेकिन अब जाकर ये आइडिया हिट हो रहा है.
उन्होंने अपने दूसरे आइडिया फेलियर के बारे में बताते हुए कहा कि मैंने गुजरात के मोरबी में घरों में लगने वाली टाइल्स मैन्यूफैक्चरिंग में हाथ आजमाया. लेकिन उस काम में न सिर्फ समय बल्कि अपने पिता की अच्छी खासी जमा-पूंजी भी लुटा दी. उसके बाद मैंने मार्केटिंग का काम किया. उसकी मैंने पढ़ाई भी की थी, लेकिन बुरी तरह फेल हुआ. उसके बाद मैंने पेमेंट्स में किस्मत आजमाई. ट्रकों के परिवहन (लॉजिस्टिक्स) में संभावनाएं तलाशीं. 8वें प्रयास में रैपिडो पर काम किया और सफल हुआ.
पवन गुंटुपल्ली ने बताया कि अगर वह फाउंडर नहीं होते तो शायद फिनटेक इंडस्ट्री में किसी आइडिया पर काम कर रहे होते. रैपिडो पर बायोपिक मूवी में किस एक्टर को लेना चाहेंगे, इस सवाल पर उन्होंने रणवीर सिंह का नाम लिया.
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