हमारी हवा जहरीली हो रही है. गुरुवार की शाम को जब मैं इस मुद्दे पर लिखने बैठी तो AQI लगातार 400 पार जाकर दम घोंट रहा था. बहुत लोगों को यह मामला बोरिंग लगे, लेकिन जब आप अपने साथ काम करने वालों को खांसते-हांफते देखते-सुनते हैं, तो चिंता होने लगती है. सुबह उठते ही दरवाजे खिड़कियां खोलने के लिए डॉक्टर मना कर रहे हैं. बड़े बुजुर्गों के लिए तो मॉर्निंग वॉक बाहर की दुनिया से सीधे संपर्क का ज़रिया है, लेकिन डॉक्टर इसकी भी मनाही कर रहे हैं. कुछ दिन पहले NDTV के हमारे कार्यक्रम में जाने-माने एक्सपर्ट डॉक्टर अशोक सेठ ने चर्चा के दौरान N-95 मास्क पहनने की सलाह दी थी. N-95 का नाम सुनते ही कोविड के दिनों की याद आ गई. उन्होंने यह भी कहा कि जरूरत हो तो बाहर निकलें, अन्यथा घर में रहें.
ऑफिस में काम कर रहे लोग फिर भी सुरक्षित हैं. एयर प्यूरिफायर लगा सकते हैं. लेकिन उन सैकड़ों लोगों का क्या जो बाहर निकलकर काम करने पर मजबूर हैं. अगर कहें कि गाड़ीवाले कुछ हद तक सुरक्षित हैं, तो दुपहिया वाहनों और बसों पर चलने वालों का क्या?
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरांमेंट (CSE) ने अपनी एक स्टडी में पाया है कि दिल्ली एनसीआर में होने वाले प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण गाड़ियों से निकलने वाला जहरीला धुआं है. गाड़ियों के धुएं से करीब 51.5% प्रदूषण हो रहा है.
यानी आधे से ज्यादा प्रदूषण वाहनों के कारण हो रहा है. शोध में पाया गया है कि वाहनों की तकनीक पर काफी काम हुआ है. ट्रकों की आवाजाही पर लगाम लग रही है. इलेक्ट्रिक वाहनों पर जोर है. लेकिन वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है. इससे जो भीड़ और जाम लगता है, वो आबोहवा के साथ सेहत के लिए भी घातक बन रहा है.
दिल्ली में करीब 79 लाख वाहन हैं. पिछले एक साल में ही 6 लाख से ज्यादा वाहन जुड़े हैं. साथ ही यह भी बता दें कि दिल्ली में हर दिन करीब 10 लाख वाहन बाहर से आते हैं और जाते हैं. यानी पब्लिक ट्रांसपोर्ट को और बेहतर करना होगा. दिल्ली की लगातार बढ़ती आबादी की तुलना में पब्लिक यातायात के साधन पर्याप्त मात्रा में बढ़ाने की जरूरत है.
CSE के शोध के अनुसार 1 लाख की आबादी के लिए 45 बसें ही हैं. मानक के अनुसार 1 लाख की आबादी के लिए 60 बसें होनी चाहिए. साथ ही बस स्टॉप पर वेटिंग टाइम काफी ज्यादा है. गर्मियों के मौसम में ये इंतजार और परेशान करता है.
एनसीआर में काम करने वालों को ऑफिस पहुंचने के लिए कई साधनों का प्रयोग करना पड़ता है. बस से सफर के साथ ऑफिस तक पंहुचने के लिए ऑटो की जरूरत पड़ती है. या फिर मेट्रो स्टेशन तक पंहुचने के लिए ऑटो की. मतलब यातायात के साधनों के अनेक साधनों पर निर्भर होना टाइम को भी खराब करता है. आम नागरिक के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट तक जल्दी और आसानी से पहुंच पाना बहुत ही आवश्यक है.
लोग निजी वाहन इसलिए भी खरीद रहे हैं, क्योंकि उससे सफर सस्ता पड़ता है. अपने वाहन से आप अपनी मंजिल तक आसानी से पहुंच जाते हैं. साधन बदलने की कवायद से तो निजात मिलती है और वो मंहगा भी पड़ता है.
तो वक्त आ गया है कि केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था को दुरुस्त करने में जुटना चाहिए. प्रदूषण के कारण और भी हैं, जैसे भवन निर्माण, उद्योगों का प्रदूषण और पराली तो सिरदर्द है ही. सरकार इन पर सख्ती कर भी रही है, लेकिन वाहनों के बढ़ते खतरों से निपटना जरूरी है. हम सिंगापुर के उदाहरण से भी कुछ सीख सकते हैं, जहां नई गाड़ी खरीदने को हतोत्साहित किया जाता है. नई कार के लिए नियम और शर्तें इतनी सख्त हैं कि वहां लोग पब्लिक टांसपोर्ट को तरजीह देना बेहतर समझते हैं. हालांकि यह भी सच्चाई है कि वहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम बेहतर है. ऐसे प्रयोगों से सरकारों पर ऑटोमोबील इंडस्ट्री का दबाव जरूर बढ़ेगा, लेकिन तालमेल बिठाने की जरूरत है. इंसान बचेंगे, तो वाहन बिकेंगे न?
निधि कुलपति एनडीटीवी इंडिया में मैनेजिंग एडिटर हैं.
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.
क्या है क्लाउड सीडिंग टेक्नोलॉजी, जिससे दिल्ली में होगी आर्टिफिशियल बारिश, खर्च होंगे इतने करोड़
Written by: श्वेता गुप्तादिल्ली-NCR में धूल का गुबार कर सकता है बीमार, यहां जानें Air pollution से होने वाली बीमारी और बचाव
Written by: सुभाषिनी त्रिपाठीघर में एयर प्यूरिफायर का काम करते हैं ये प्लांट, पॉल्यूशन को कर देते हैं गायब
Written by: मुकेश बौड़ाईThe Delhi government is set to transform 15 scattered patches of vacant land across the national capital into dense urban forests, called 'Namo Vans,' to enhance the city's green cover and combat air pollution.
A new study shows potential links between plastic exposure to metabolic and immune disturbances. This adds evidence to growing concerns over microplastic health risks.
The fort's red sandstone walls are turning black due to air pollution, specifically the high levels of sulfur dioxide and nitrogen oxides in the air.
A combination of rainfall and steady winds helped Delhi avoid a sharp rise in pollution levels following Dussehra celebrations on Thursday, with the city recording improved air quality on Friday.
A new global analysis highlights that children remain disproportionately harmed by exposure to second-hand smoke, leading to respiratory illness, growth issues, and long-term disease risk.
................................ Advertisement ................................
Opinion | Why Indians Have Just Given Up On Air Pollution CrisisTanushree Ganguly
Friday December 20, 2024While some may argue that people in Delhi are now more aware of air pollution than they were a decade back, my rebuttal would be that awareness does not mean that people are concerned.
Opinion | You Must Outrage Over Filthy Air More Than Once A YearJyoti Pande Lavakare
Tuesday December 10, 2024Delhi welcomed us with monsoon rains and mangos. We were home. Fast forward a couple of years, in the winter of 2012, I found myself in denial about something other parents, mostly expats, were calling toxic air.
Opinion | Delhi's Air Pollution Situation Is Like A Bad MarriageNishtha Gautam
Friday November 22, 2024On a good day, such as today, the AQI reading in Delhi is 407. We are jubilant at the sickly sunshine trickling through the slightly dissipated smog. At least its not 1600.
दिवाली... पराली... सियासी जुगाली!Ashwini kumar
Monday November 18, 2024दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का समाधान तो आज तक मिला नहीं. हर साल चिंतित होकर हम-आप सांसों की तकलीफ के साथ-साथ दिल और ब्लड प्रेशर के मरीज भी क्यों बनें?
घर में कैद बुजुर्ग और हांफते लोग, दिल्ली की सांसों में घुला ये कैसा रोग?Nidhi Kulpati
Friday November 08, 2024हमारी हवा जहरीली हो रही है. गुरुवार की शाम को जब मैं इस मुद्दे पर लिखने बैठी तो AQI लगातार 400 पार जाकर दम घोंट रहा था. बहुत लोगों को यह मामला बोरिंग लगे, लेकिन जब आप अपने साथ काम करने वालों को खांसते-हांफते देखते-सुनते हैं, तो चिंता होने लगती है. सुबह उठते ही दरवाजे खिड़कियां खोलने के लिए डॉक्टर मना कर रहे हैं. बड़े बुजुर्गों के लिए तो मॉर्निंग वॉक बाहर की दुनिया से सीधे संपर्क का ज़रिया है, लेकिन डॉक्टर इसकी भी मनाही कर रहे हैं.