अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने राष्ट्रपति पद की रेस से खुद के हटने का ऐलान कर दिया है. पिछले महीने रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप के साथ हुई एक बहस में खराब प्रदर्शन के बाद से ही इस बात की आशंका जताई जा रही थी कि बाइडेन राष्ट्रपति की होड़ से बाहर हो सकते हैं. अब जब चुनाव ज्यादा दूर नहीं रह गए हैं. ऐसे में खुद बाइडेन ने रविवार को एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि वह ट्रम्प के खिलाफ चुनाव अभियान से हट रहे हैं. उन्होंने कहा कि देश व डेमोक्रेटिक पार्टी के सर्वोत्तम हित में मैं यह फैसला कर रहा हूं. बाइडेन ने उपराष्ट्रपति कमला हैरिस को डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से उम्मीदवार नामांकित करने का समर्थन किया. उन्होंने कहा, "मैं कमला को हमारी पार्टी का उम्मीदवार बनाने के लिए अपना पूरा समर्थन देता हूं. डेमोक्रेट को अब एक साथ आकर डोनाल्ड ट्रम्प को हराने का समय आ गया है." गौर करने वाली बात ये है कि अगर अगस्त में होने वाले कन्वेंशन में कमला हैरिस को डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से नामांकित किया जाता है, तो वह व्हाइट हाउस के लिए नामांकन हासिल करने वाली पहली अफ्रीकी-अमेरिकी महिला और पहली भारतीय-अमेरिकी बन जाएंगी.
राष्ट्रपति बाइडेन के दौर में अमेरिका ने बहुत प्रगति की है. इस दौरान उन्होंने राष्ट्र के पुनर्निर्माण, वरिष्ठ नागरिकों के लिए दवा की लागत कम करने और रिकॉर्ड संख्या में अमेरिकियों के लिए सस्ती स्वास्थ्य सेवा का विस्तार करने में रिकॉर्ड खर्च किया है. 30 वर्षों में पहला बंदूक सुरक्षा कानून पारित किया. जब उन्होंने 2021 में हैरिस के साथ राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी, तब बाकी देशों की तरह की अमेरिका भी कोविड-19 महामारी की चपेट में था, लगभग सब कुछ थमा हुआ सा था मगर बाइडेन ने अमेरिका को महामारी से उबारा. अमेरिका में सुप्रीम कोर्ट में पहली अफ्रीकी-अमेरिकी महिला को नियुक्त किया गया और दुनिया के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण जलवायु कानून पारित किया.
देश को आर्थिक मंदी से बाहर निकालने में बाइडेन का कार्यकाल का खास योगदान रहा. वहीं रोज़गार फिर से ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गया और शेयर बाज़ारों में भी उछाल आया. जो कि उनकी सरकार की बड़ी उपलब्धि है. राष्ट्रपति पद पर उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि आर्थिक पुनरुत्थान के लिए लगभग 1.6 ट्रिलियन डॉलर के पैकेज को अपनाना था, जिसमें बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा परियोजनाएं, मध्यम वर्ग की नौकरियों में वृद्धि की योजनाएं और प्रमुख प्रौद्योगिकी, विशेष रूप से कंप्यूटर चिप्स में आत्मनिर्भरता का निर्माण शामिल था.
हालांकि इमिग्रेशन पॉलिसी बाइडेन की कमजोरी थी. पिछले दिनों ही बहस के दौरान इमिग्रेशन के मुद्दे पर ट्रंप ने कहा, "जो बाइडेन की इमिग्रेशन पॉलिसी और ओपन बॉर्डर वाले अप्रोच (दृष्टिकोण) ने देशभर में क्राइम रेट में इजाफा किया है. इसलिए देश में रह रहे अधिकतर प्रवासियों को बाहर निकालना होगा, क्योंकि वे हमारे देश को नष्ट करने जा रहे हैं." ट्रंप ने दावा किया बाइडेन साउथ यूएस बॉर्डर को सुरक्षित करने में नाकाम रहे. इससे देश में कई अपराधियों को शरण मिल गई है. उन्होंने यहां तक कह दिया, “मैं इसे बाइडेन माइग्रेंट क्राइम (प्रवासी अपराध) कहता हूं.” जबकि अपने बचाव में जो बाइडेन ने कहा, "वो देश के आव्रजन संकट (Immigration Crisis) के बारे में झूठ फैलाते हैं. अमेरिका अवैध अप्रवासियों का स्वागत नहीं करता. ये सच नहीं है."
बाइडेन ने सक्रिय रूप से दुनिया के साथ फिर से जुड़कर विदेश नीति पर अधिक प्रभाव डाला. इंडो-पैसिफिक भागीदारी के स्तर को बढ़ाना और इसे विस्तारित करने का प्रयास करना, यूनेस्को में फिर से शामिल होना भी बड़ा कदम रहा. साथ हीं ट्रम्प की बयानबाजी से नाटो संबंधों को हुए नुकसान की भरपाई की. लेकिन युद्ध के गतिरोध के कारण वित्तीय और सैन्य सहायता के लिए घरेलू समर्थन कम होता जा रहा था. और मॉस्को चीन के साथ मिलकर काम करते हुए एक महत्वपूर्ण विरोधी बना हुआ है.
फिलिस्तीन के मुद्दे पर बाइडेन सरकार तब विवादों में आ गई, जब हमास के हमले के तुरंत बाद इजरायल के लिए उनके बिना शर्त समर्थन से उनकी पार्टी में ही आवाज उठने लगी. बाइडेन ने भारत और क्वाड के साथ संबंधों में निवेश किया, जो जापान और ऑस्ट्रेलिया सहित चार देशों का समूह है. उन्होंने क्वाड के संवाद को प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपति के स्तर तक बढ़ा दिया. चीन का सामना करने के लिए उन्होंने दोतरफा दृष्टिकोण अपनाया. जैसे कि बीजिंग के खिलाफ गठबंधन बनाना और तकनीक और बाजार तक पहुंच में कटौती करके उसकी आर्थिक शक्ति को सीमित करना. इस बीच उन्हें उत्तर कोरिया और ईरान, एक ऐसा देश जो परमाणु क्षमता हासिल करने के करीब है. दोनों से ही कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. बाइडेन के नेतृत्व में, अमेरिका ने भारत के साथ रक्षा और टेक्नोलॉजी सेक्टर का निर्माण किया. पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वाशिंगटन की यात्रा सबसे महत्वपूर्ण थी, जहां कई ठोस नीतिगत समझौते भी हुए.
बाइडेन ने निजी जीवन में बहुत कुछ झेला है, लेकिन उन्होंने इनसे उबरकर राजनीति में आगे बढ़ते हुए काम किया है. जैसे ही बाइडेन 29 साल की उम्र में अपना सीनेट करियर शुरू करने वाले थे, उनकी पहली पत्नी नीलला, उनके बेटे ब्यू और हंटर और बेटी एमी एक कार दुर्घटना में घायल हो गए. नीलला और एमी की मृत्यु हो गई, जबकि बेटों को गंभीर चोटों के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया. दुर्घटना में जीवित बचे और अपने पिता के राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में देखे जाने वाले ब्यू बाइडेन की 2015 में मृत्यु हो गई, जबकि जो बाइडेन अगले साल राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने पर विचार कर रहे थे. ब्यू बाइडेन डेलावेयर के अटॉर्नी जनरल चुने जाने के बाद राजनीति में अपनी पहचान बना रहे थे, जब उन्हें ब्रेन कैंसर हो गया. दूसरे बेटे, हंटर बाइडेन, व्यक्तिगत और राजनीतिक घोटालों के बाद नशे के आदी हो गए.
बाइडेन ने हकलाने की समस्या से शुरू होने वाली शारीरिक समस्याओं पर काबू पा लिया था, जिस पर उन्होंने कहा कि उन्होंने कविता सुनाकर और राजनीतिक भाषण देने में सक्षम होकर इस पर काबू पा लिया. जो बाइडेन को दो बार ब्रेन एन्यूरिज्म हुआ था और उनके लिए अलग-अलग सर्जरी हुई थी और 1988 में उन्हें पल्मोनरी एम्बोलिज्म भी हुआ था, जिसके कारण वे लगभग आधे साल तक खेल से दूर रहे. उनके हर सुख-दुख में उनकी दूसरी पत्नी जिल, जिनसे उन्होंने 1977 में शादी की थी, उनके साथ खड़ी रहीं जो कि उनकी सलाहकार और जिंदगी का सहारा भी रही. वे राजनीतिक रूप से शामिल रही हैं और चुनावों में उनके लिए प्रचार किया है और संभवतः राष्ट्रपति पद की दौड़ छोड़ने के उनके फैसले में उनकी भी भूमिका रही है. उनकी एक बेटी एशले ब्लेज़र है, जो एक सामाजिक कार्यकर्ता है.
बाइडेन का जन्म पेंसिल्वेनिया के स्क्रैंटन में एक आयरिश मूल के परिवार में हुआ था और वे अपने बचपन और परिवार के संघर्षों के बारे में बात करते हैं. उनके पिता जोसेफ भी एक मामूली व्यक्ति थे. बाइडेन ने डेलावेयर विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की और उसके बाद न्यूयॉर्क राज्य में सिरैक्यूज़ विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की और कुछ समय के लिए निजी तौर पर और एक पब्लिक डिफेंडर के रूप में कानून का अभ्यास किया. आधी सदी से भी ज़्यादा समय तक चलने वाले उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत 1970 में तब हुई जब उन्होंने डेलावेयर राज्य में न्यूकैसल काउंटी काउंसिल के लिए चुनाव जीता, जहां उनका परिवार शिफ्ट हो गया था. दो साल बाद उन्होंने सीनेट के लिए सफलतापूर्वक चुनाव लड़ा, जहां उन्होंने 36 साल तक सदस्य के रूप में और आठ साल तक उप-राष्ट्रपति के रूप में सीनेट की अध्यक्षता की. बाइडेन ने अपने राजनीतिक जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन इससे उन्होंने बहुत कुछ सीखा.
(आईएएनएस इनपुट्स के साथ)
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