
रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं, लेकिन भारत के नज़रिये से इसे कैसे देखा जाए. अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ट्रंप के आपसी ताल्लुकात की बात की जाए, तो काफ़ी गर्मजोशी दिखती है. दोनों नेताओं के बीच अब तक तीन बार मुलाकात हुई हैं. पहली मुलाकात जून, 2017 में हुई थी, जब PM मोदी वॉशिंगटन डीसी गए थे. दूसरी मुलाकात सितंबर, 2019 में ह्यूस्टन में 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम के दौरान हुई थी, और तीसरी और आखिरी बार फरवरी, 2020 में दोनों नेता मिले थे, जब ट्रंप भारत आए थे.
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा डोनाल्ड ट्रंप को अपना 'दोस्त' कहते हैं. दोनों नेताओं की एक-दूसरे को गले लगाते, हंसते-मज़ाक करते की तमाम तस्वीरें दिखती रहती हैं, लेकिन दो राष्ट्राध्यक्षों के बीच इस तरह की बातचीत कभी निजी या व्यक्तिगत नहीं होती, क्योंकि दोनों ही अपने-अपने देशों के लिए जवाबदेह होते हैं. दोनों की हर बात, हर पॉलिसी अपने देश के लिए होती है. यही वजह है कि PM मोदी के साथ इतनी घनिष्ठता के बावजूद डोनाल्ड ट्रंप भारत पर ट्रेड ड्यूटी को लेकर बेहद आक्रामक रहे हैं. भारत को उन्होंने 'Tariff King' से लेकर 'Trade Abuser' तक कहा है.
अंत में यही समझ आता है कि दो देशों के नेताओं के बीच की आपसी दोस्ती और समझ के साथ-साथ दोनों देशों की एक-दूसरे के लिए पॉलिसी कैसी हैं, यह भी मायने रखता है. इसलिए डोनाल्ड ट्रंप का राष्ट्रपति चुनाव जीतना भारत के लिए अच्छा है या बुरा, इसका जवाब सिर्फ हां या न में नहीं दिया जा सकता. इसे समझने के लिए हमें ट्रंप और उनकी पॉलिसियों को समझना होगा.
इस बार के राष्ट्रपति चुनाव में भी डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के खिलाफ पारस्परिक टैक्स (reciprocal tax) लगाने की बात कही थी. अपने एक भाषण के दौरान ट्रंप ने कहा था कि जब टैरिफ़ की बात आती है, तो अमेरिका काफी उदार है, लेकिन चीन, ब्राज़ील और भारत जैसे देश काफी ऊंचा टैरिफ़ लगाते हैं. भारत तो सबसे ज़्यादा टैरिफ़ लगाता है. अमेरिकी कंपनियों ने भारत में लगने वाले ऊंचे टैक्स को चुनौती बताया है.
ट्रंप यह भी दावा करते हैं कि भारत 10 राष्ट्रों के साथ ट्रेड करता है, 9 के साथ उसको ट्रेड डेफिसिट है, यानी व्यापार में घाटा है, मतबल एक्सपोर्ट कम और इम्पोर्ट ज़्यादा है, लेकिन अमेरिका के साथ उल्टा है, उसके एक्सपोर्ट ज़्यादा और इम्पोर्ट कम हैं. अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप ने 2018 में भारत से हार्ले डेविडसन मोटरसाइकिल के इम्पोर्ट पर टैक्स को कम करने की अपील की थी.
उन्होंने कहा था कि वह भारत से आने वाली मोटरसाइकिलों पर टैक्स को बढ़ा देंगे. इसके बाद भारत ने इम्पोर्ट होने वाली मोटरसाइकिलों पर इम्पोर्ट ड्यूटी को 75 फ़ीसदी से घटाकर 50 फ़ीसदी कर दिया था. हालांकि ट्रंप तब भी खुश नहीं हुए, उन्होंने कहा कि इससे अमेरिका को कुछ नहीं मिलने वाला, क्योंकि वह ज़ीरो टैक्स लगाता है. 'अमेरिका फर्स्ट' का नारा देने वाले ट्रंप ने अमेरिकी लोगों से वादा किया कि अगर वह सत्ता में आए, तो चीन ही नहीं, भारत पर भी ज़्यादा टैक्स लगाएंगे. यह भारत के नज़रिये से बहुत नकारात्मक टिप्पणी है.
जब बात ग्लोबल ट्रेड की आती है, तो ट्रंप संरक्षणवाद के समर्थक हैं, यह साफ दिखता है. वह घरेलू मैन्युफ़ैक्चरिंग को बढ़ावा देना चाहते हैं, घरेलू रोज़गार को बढ़ाना चाहते हैं, इसमें कुछ गलत नहीं है, हर देश यही चाहता है और करता है, लेकिन इसका खामियाज़ा अमेरिका के ट्रेड पार्टनरों को भुगतना पड़ सकता है, जिनमें भारत भी शामिल है. ट्रंप के आने से इस बात की आशंका ज़रूर बढ़ जाती है कि भारत के एक्सपोर्ट पर वह टैरिफ़ बढ़ा सकते हैं.
मौजूदा बाइडेन प्रशासन में भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार बढ़ा है. अमेरिका, भारत का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर भी है. इन दोनों महान राष्ट्रों के बीच सालाना व्यापार 190 अरब अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा का हो चुका है. FY20 और FY24 के दौरान भारत का अमेरिका के लिए मर्चेंडाइज़ एक्सपोर्ट 46 फ़ीसदी बढ़कर 77.5 अरब अमेरिकी डॉलर हो चुका है, जो पहले 53.1 अरब अमेरिकी डॉलर था. भारत का अमेरिका से इम्पोर्ट भी इस दौरान 17.9 फ़ीसदी बढ़ा है और यह 35.8 अरब अमेरिकी डॉलर से 42.2 अरब अमेरिकी डॉलर हो चुका है. दोनों देशो के बीच सर्विसेज़ का ट्रेड साल 2018 से 30 फ़ीसदी बढ़कर साल 2024 में 70.5 अरब अमेरिकी डॉलर हो चुका है.
इसमें कोई शक नहीं कि अमेरिका भारत के लिए बहुत बड़ा बाज़ार है. भारत अमेरिका को टेक्नोलॉजी, फ़ार्मास्यूटिकल, इंजीनियरिंग और टेक्सटाइल प्रोडक्ट एक्सपोर्ट करता है. अब ऐसे में अगर डोनाल्ड ट्रंप भारत के साथ कोई ट्रेड सख्ती दिखाते हैं और ऊंचे टैरिफ़ थोपते हैं, तो भारत के इन्हीं सेक्टरों पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है, अमेरिका से डिमांड घट सकती है और भारतीय कंपनियों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है.
अब ट्रंप ऐसा करेंगे या नहीं, अभी तो यह कहना मुश्किल है, लेकिन साल 2018 को याद करें, जब ट्रंप प्रशासन ने इम्पोर्ट स्टील पर 25 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाया था और एल्यूमीनियम पर 10 फ़ीसदी का टैरिफ़ थोप दिया था, जिससे एक साल के अंदर ही भारत का स्टील एक्सपोर्ट 46 फ़ीसदी तक गिर गया था, स्टील सेक्टर को करीब 24 करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा था. ट्रंप यहीं नहीं रुके थे, उन्होंने साल 2019 में भारत को जनरलाइज़्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेसेंज़ (GSP) से भी हटा दिया था, जिससे भारत के एक्सपोर्ट को 560 करोड़ अमेरिकी डॉलर का झटका लगा था.
इसके जवाब में भारत ने 16 जून, 2019 से अमेरिका से एक्सपोर्ट किए जाने वाले 28 प्रोडक्ट पर जवाबी टैरिफ़ लगाया. हालांकि साल 2023 में बाइडेन प्रशासन ने विवाद को सुलझाया और स्टील, एल्यूमिनियम पर उन ड्यूटीज़ को हटाने पर सहमति जताई, जिन्हे ट्रंप प्रशासन ने लगाया था. इसके बाद भारत ने भी दालों, अखरोट, बादाम, सेब जैसे प्रोडक्ट पर जवाबी टैरिफ़ हटा लिया. तब दोनों देशों के बीच ट्रेड शांतिपूर्वक चला.
अब जब डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर सत्ता में वापसी कर रहे हैं, तो ज़ाहिर है सवाल घूम-फिरकर वही सामने आता है कि क्या वह एक बार फिर भारत पर टैरिफ़ का बोझ डालेंगे. अगर हां, तो दोनों देशों के बीच ट्रेड को लेकर बना बैलेंस बिगड़ सकता है.
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