अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव (Presidential election) भारत के आम चुनाव से बिल्कुल अलहदा है. इसमें कुछ ऐसे प्रावधान हैं, जो चौंकाते हैं. बहुमत मिलने के बाद भी 'पिक्चर बाकी है' का सीन है. मसलन अगर कहा जाए कि कोई बहुमत मिलने के बावजूद कुर्सी से दूर रह सकता है तो! चौंक गए ना. अमेरिकी चुनाव में ऐसा सीन बिल्कुल संभव है. रुझानों और नतीजों की बात करें तो डोनाल्ड ट्रंप बहुमत के आंकड़े के करीब पहुंच गए हैं. कमला हैरिस काफी पीछे हैं, इसके बावजूद भी ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है. अमेरिका के संविधान के मुताबिक- जिस सियासी दल को निर्वाचक मंडल का 270 स्थान हासिल हो जाता है, उस दल के उम्मीदवार को राष्ट्रपति की कुर्सी मिल जाने की संभावना बढ़ जाती है. यहां जरा संभावना शब्द पर गौर फरमाइए. यानी बहुमत का आंकड़े तक पहुंचने के बाद भी राष्ट्रपति की कुर्सी पक्की नहीं हो जाती. आखिर ऐसी स्थिति बनती क्यों है, आइए इसे समझते हैं.
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में ऐसे मौके कई दफे आए हैं. ऐसे में निर्वाचक मंडल के सदस्यों की नीयत अगर डोल गई (या कहें अंतरआत्मा की आवाज अगर जाग गई) तो बड़ा खेला हो सकता है. पार्टी लाइन के खिलाफ वोट डालकर गेम बनाया-बिगाड़ा जा सकता है.
इसलिए रिपब्लिकन डॉनल्ड ट्रंप 270 के जादुई आकंड़े के करीब हैं इसके बावजूद कुर्सी पर सस्पेंस बना रहेगा. इसीलिए अमेरिका में 270 नंबर हासिल करने वाला दल तब तक चैन की सांस नहीं लेता, जब तक कि उसके निर्वाचक मंडल के सदस्य वोट नहीं डाल देते. ऐसे में अमेरिकी संविधान के मुताबिक इस स्थिति में फैसला अमेरिकी संसद यानी कांग्रेस का निचला सदन प्रतिनिधि सभा करती है. प्रतिनिधि सभा में 1894 में ऐसी नौबत आ चुकी है. तब प्रतिनिधि सभा ने क्विन्सी एडम्स को निर्वाचित घोषित किया था.
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Reported by: NDTV इंडिया, Edited by: रितु शर्मा© Copyright NDTV Convergence Limited 2024. All rights reserved.