कोरोना की दूसरी लहर में संक्रमण शहरों से गांव की तरफ बहुत तेज़ी से फैला. राजस्थान के कुल कोरोना केसों में से 40% गांव में थे और ग्राम़ीण इलाकों में मौतें (53%) भ़ी बहुत ज़्यादा हुईं. चिकित्सा व्यवस्था के सामने सबसे बड़ी चुनौत़ी थ़ी- कोरोना के मामलों में केसों को चयनित करना, खासकर ग्राम़ीण इलाकों में क्योंकि वहां लोग अपऩी ब़ीमारी बताने से डरते थे. उन्हें इस बात का डर था कि अगर उनमें कोरोना के लक्षण मिले तो उन्हें शहर ले जाकरअस्पताल में भर्ती करा दिया जाएगा और परिवार से नहीं मिलने देंगे. इस मानसिकता के कारण ग्राम़ीण इलाकों में कोरोना की अंडर रिपोर्टिंग हुई जिसकी वजह से महामारी के और फैलने की आशंका बऩी रही, लेकिन 22 साल के विप्र गोयल ने जब देखा कि महामारी इतने खतरनाक तरीके से फैल रही है तो उन्होंने कुछ करने की अपने मन में ठान ली.विप्र ने एक ऐसे App का आविष्कार किया जिससे कुछ हद तक इस महामारी पर काबू पाया जा सकता है. कोरोना कवच साथ़ी एक ऐसा मोबाइल App है कि इसके जरिये कोविड की पहचान हो सकती है. लेकिन ये काम केवल कोरोना की पहचान करने तक सीमित नहीं रहे, विप्र ने कोरोना कवच साथी की टीमें बनाई जिन्होंने घर-घर जाकर लोगों का सर्वे किया, ये जांचा कि कितने लोगों को कोरोना के लक्षण हैं और फिर उन तक दवाएं पहुंचाई गईं. अगर इलाज के बावजूद लोग स्वस्थ नहीं हुए तो वालेंटियर्स ने App से लोगों को चिन्हित करके RTPCR टेस्ट भ़ी करवाए.
कोरोना कवच App का प्रयोग राजस्थान के दौसा में एक पायलट प्रोजेक्ट के जरिये किया गया है. जिले के स्वास्थ्य अधिकारियों और प्राथमिक चिकित्सा केंद्र के स्वास्थ्य कर्मचारियों के साथ मिलकर एक App का प्रयोग, जमीनी स्तर पर जांचा गया है. App के जरिये वालेंटियर्स का डेटा एकत्र किया गया. लोगों के घर तक सर्वे हुए कि कहां-कहां कोरोना के लक्षण हैं, उन लोगों को आइसोलेट या अलग करने की सलाह दी गई और इलाज किया गया. जहां सरकारी तंत्र में यह सब रजिस्टर और कागजी कार्यवाही के जरिये होता था, वहां विप्र ने App के जरिये इसे साधारण बना दिया क्योंकि कोरोनावायरस की जल्द से जल्द पहचान से उसे रोका जा सकता है.
सारा डेटा स्थाऩीय प्राथमिक चिकित्सालय में दर्ज हुआ. डेटा को देखकर कौन से दवाई कहां पहुंचानी है,इसका प्रिस्क्रिप्शन बनाया गया और फिर विप्र और वालेंटियर्स ने यह दवाएं लोगों तक पहुंचाईं. विप्र ने ये App मई में बनाया जब महामारी चरम पर थ़ी. नेशनल इन्फॉर्मेशन सेंटर राजस्थान केजरिये इसे वेरिफाई भी किया गया है. App से कोरोना के मरीजों को चिन्हित करने में आसाऩी रहती है, जिसके चलते स्वास्थ्य विभाग उन्हें अलग करके संक्रमण रोक सकता है और जल्द से जल्द उन्हें दवा पहुंचा सकता है. जैसे 45 साल के किशन लाल, जो दौसा जिले के एक किसान हैं, को कोविड के सारे लक्षण थे सर्दी-जुकाम, खांसी और बुखार. लेकिन डॉक्टर के पास जाने से वो डर रहे थे. जैसे ही कोरोना कवच साथी उनके घर तक पहुंचे, उन्हें सबसे पहले अलग रहने की सलाह दी गई जिससे उनके घर वाले, संक्रमण की चपेट में आने से बच गए. फिर चिकित्साकर्मियों की मदद से उन्हें दवाएं पहुंचाई गईं.किशन कहते हैं, "मैं डरा हुआ था इसलिए ब़ीमारी के बारे में किस़ी को नहीं बताया, सोच रहा था कि 14 दिन के लिए अस्पताल ले जाएंगे और किसीसे मिलने नहीं देंगे लेकिन कोरोना कवच App के लोग आए और उन्होंने कहा कि आप अलग रहो और मुझे दवाएं दी जिसमें मुझे काफी आराम मिला.''
कोरोना कवच App कैसे सरकारी तंत्र के लिए कोरोना से निपटने में मददगार रहेगा, इसके जवाब में विप्र ने बताया, "हर ग्राम पंचायत में एक ANM है दो आशा कार्यकर्ता हैं और एक ग्राम़ीण स्वास्थ्य टीम है, ये छह हजार लोगों को ट्रीट करने के लिए सक्षम नहीं हैं. इन चुनौतियों से निपटने के लिए हमने कोरोना साथ़ी App बनाया है. युवा साथ़ी घर-घर जाकर सर्वे करते हैं, लक्षणों को चयनित करते हैं और दूसरा साथी ANM द्वारा प्रस्तावित दवाओं को घरतक पहुंचाता है. विप्र और उनकी मां डॉ ऩीलिमा, जो एक NGO परमाणु सहेली चलात़ी हैं, ने इस पूरे प्रोजेक्ट पर काम किया है. आर्थिक सहयोग विप्र की मां नीलिमा ने दिया है. 1200 घरों का सर्वे हुआ और राजस्थान के दौसा में त़ीन गांव हरिपुरा, महेश्वरा खुर्द और मोरपट्टी में एप से कोरोना चिन्हित करने का प्रयोग किया गया. इस App से इन त़ीन गांव में 700 लोगों का सर्वे हुआ, इनमें 200 लोगों में कोरोना के लक्षण दिखाई दिए और उन्हें दवाएं दी गईं और इसमें से 10 की जांच हुई.
वेदु गुप्ता महेश्वरा खुर्द के प्राथमिक चिकित्सालय में नर्स या ANM हैं, उनका मानना है कि App से से उन्हें काफी मदद मिली क्योंकि लोग सरकारी तंत्र तक अपने लक्षण बताने में डर रहे थे, उन्होंने कहा, "बुखार-जुकाम, खांस़ी के मरीज बहुत थे लेकिन कोई बताना नहीं चाहता, हमारी टीम जात़ी है तोलोग सोचते हैं कि ये सरकारी कर्मचारी हैं, इन्हें मत बताओ नहीं तो अस्पताल जाना पड़ेगा और हमको घर वालों से अलग कर देंगे, इस डर से लोग बताना नहीं चाहते थे.” महेश्वरा खुर्द, जहां कोरोना कवच साथियों ने काम किया, वहां की सरपंच आशा म़ीणा का कहना था, "हमारे गांव में युवा साथियों की टीम शामिल हुई तो लोगों ने अपनी ब़ीमारी बताई , क्योंकि उस टीम में इस इलाके के लोग थे तो उन्होंने सोचा कि अपनों को ब़ीमारी बताने में कोई डर नहीं है. वो खुलकर बोले, हमें इस App से बहुत मदद मिली.” कोरोना कवच App के जरिये मरीज पर लगातार निगराऩी भ़ी रख़ी जात़ी है, ऑक्स़ीजन लेवल कितना है और अस्पताल तक जाने की जरुरत है या नहीं ये सब App में डाले गए डाटा से तय होता है. विप्र को अब उम्म़ीद है कि कोरोना कवच App के सफल प्रयोग के बाद राजस्थान सरकार इसे दूसरे जिलों में भी इस्तेमाल करेगी. कोविड की दूसरी लहर कुछ हद तक थमी है लेकिन अब भी महेश्वरा खुर्द में App के जरिये विप्र और उनकी टीम दोबारा घरों में सर्वे कर रही है और कोरोना को रोकने में जुटी है.
लॉटोलैंड आज का सितारा श्रृंखला में हम आम आदमियों और उनके असाधारण कार्यों के बारे में जानकारी देते हैं. Lottoland विप्र गोयल के कार्य के लिए एक लाख रुपये की सहायता प्रदान करेगा.
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