अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप ने जीत का दावा किया है. मतगणना के रूझानों के मुताबिक वो जीत के लिए जरूरी नंबर जुटा चुके हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप की जीत को बड़ी आहट के रूप में देखा जा रहा है. ह्वाइट हाउस में ट्रंप की वापसी को रूस और यूक्रेन में पिछले करीब तीन साल से जारी युद्ध के खात्मे के रूप में देखा जा रहा है. ट्रंप इजरायल और ईरान के बीच जारी छद्म युद्ध को खत्म करवाने की दिशा में भी काम कर सकते हैं. ट्रंप ऐसे समय में ह्वाइट हाउस में प्रवेश करेंगे, जब दुनिया दो कठिन युद्धों का साक्षी बन रही है. आइए जानते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने का रूस-यूक्रेन युद्ध और पश्चिम एशिया में जारी संकट पर क्या असर पड़ सकता है.
चुनाव प्रचार के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि अगर वह ह्वाइट हाउस में वापस लौटते हैं तो वह यूक्रेन-रूस के युद्ध को खत्म कर देंगे. विश्लेषकों का मानना है कि जल्दबाजी में किए गए किसी भी समझौते से यूक्रेन कमजोर होगा और यूरोप की सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी.

यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की इस साल सितंबर में अमेरिका की यात्रा पर गए थे. इस दौरान उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव के दोनों प्रमुख उम्मीदवारों डेमोक्रेट कमला हैरिस और रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात की थी.इस दौरान हैरिस ने कहा था कि इस युद्ध का अंत यूक्रेन की सहमति के बिना नहीं हो सकता है. वहीं ट्रंप का कहना था कि यह युद्ध जल्द से जल्द खत्म होना चाहिए.उनका कहना था कि यूक्रेन और उसके राष्ट्रपति युद्ध की वजह से बड़ी कठिनाइयां झेल रहें हैं.
रूस के हमले के बाद से ही अमेरिका यूक्रेन के साथ खड़ा रहा है.रूस के आक्रमण के बाद से अमेरिका इस साल जून तक करीब 175 अरब डॉलर की मदद दे चुका है. इन सहायता पैकेजों को पारित करवाने में डेमोक्रेट के साथ-साथ रिपब्लिकन सांदसों का भी सहयोग मिलता रहा है. हालांकि रिपब्लिकन सांसद इसमें इफ-बट भी लगाते रहते हैं. उनका कहना है कि जितना पैसा यूक्रेन पर खर्च होता है, उस पैसे से मैक्सिको से लगती सीमा पर दीवार बनाई जा सकती है, जिससे अवैध प्रवासी अमेरिका में प्रवेश न कर सकें.

यूक्रेन में कब्जे में लिए गए अमेरिका में बने टैंकों के साथ फोटो लेते रूसी नागरिक.
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पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पहले कई बार कह चुके हैं कि रूस-यूक्रेन युद्ध रुक जाना चाहिए, अगर ऐसा नहीं होता है तो वो यूक्रेन को मिलने वाली सैन्य सहायता को रोक देंगे. इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि वो रूसी राष्ट्रपति से कहेंगे कि वो यूक्रेन से समझौता कर लें नहीं तो वे यूक्रेन को और अधिक सहायता देना शुरू कर देंगे. यहां यह उल्लेखनीय है कि अमेरिका और रूस के तल्ख रिश्ते के बाद भी डोनाल्ड ट्रंप के रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के साथ व्यक्तिगत दोस्ताना संबंध हैं.
डोनाल्ड ट्रंप रूस से किस तरह से समझौते की उम्मीद कर रहे हैं और यूक्रेन के राष्ट्रपति कितना समझौता कर सकते हैं, यह अभी साफ नहीं है. लेकिन दोनों अभी किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे हैं. रूस न तो कोई बड़ा लक्ष्य हासिल कर पाया है और न यूक्रेन ने अभी तक अपनी जमीन खोई है. ऐसे में ट्रंप के राष्ट्रपति पद संभालने से पहले तक का समय इस युद्ध के लिए काफी महत्वपूर्ण है. इस दौरान हमें यह देखना होगा कि यह युद्ध किस दिशा में जाता है.
डोनाल्ड ट्रंप इस बार के राष्ट्रपति चुनाव में दो डेमोक्रेट उम्मीदवार के साथ सार्वजनिक बहस में शामिल हुए. पहली बार राष्ट्रपति जो बाइडन के साथ. दूसरी बार बाइडन के रेस से हट जाने के बाद उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के साथ. हैरिस से बहस के दौरान ट्रंप ने बाइडन प्रशासन पर इजरायल को लेकर गंभीर आरोप लगाए थे. उन्होंने कहा था कि अगर यही रवैया रहा तो इजरायल का नामो-निशान ही नक्शे से मिट जाएगा. मतलब बाइडन जिस तरह से हमास-इजरायल युद्ध से जिस तरह से निपट रहा था, उससे ट्रंप खुश नहीं थे.

साल 2016 में डोनाल्ड ट्रंप की जीत से खुश होकर इजरायल की पीएम ने एक इलाके का नाम ट्रंप हाइट्स रख दिया था.
ट्रंप को इजरायल के कट्टर समर्थक के रूप में देखा जाता है. यही वजह है कि मंगलवार को जब नतीजे ट्रंप के पक्ष में आए तो इजरायली राष्ट्रपति बेंजामिन नेतन्याहू ने इसे इतिहास में सबसे कड़ा मुकाबला बताते हुए ट्रंप की बधाई दी. इससे पहले ट्रंप जब 2016 में राष्ट्रपति चुने गए थे तो नेतन्याहू ने गोलान हाइट्स के एक इलाके का नाम ही ट्रंप हाइट्स रख दिया था. यह बताता है कि नेतन्याहू ट्रंप को कितना पसंद करते हैं.
ट्रंप की नीतिया भी इजरायलपरस्त की रही हैं. वो पहली बार जब राष्ट्रपति बने थे तो उन्होंने गोलान पहाड़ी पर इजरायल के दावे को मान्यता दी थी.इस पहाड़ी को 1967 में सीरिया से छीना गया था. इजरायल ने इस पहाड़ी पर कब्जा जमाया था. इसके अलावा ट्रंप प्रशासन ने यरूशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता दी थी. उनका यह कदम अमेरिका की पुरानी नीति के उलट था. इससे नेतन्याहू इतने खुश हो गए थे कि उन्होंने ह्वाइट हाउस में ट्रंप को इजरायल का अब तक का सबसे अच्छा दोस्त बता दिया था.

अब एक बार डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर ऐसे समय राष्ट्रपति बने हैं, जब इजरायली पीएम नेतन्याहू एक बहुध्रुवीय युद्ध में शामिल हैं. इसके साथ-साथ वो घरेलू मोर्चे पर भी आलेचनाओं का सामना कर रहे हैं.
ट्रंप के विपरीत डेमोक्रेट जो बाइडन का प्रशासन इजरायल पर लगातार संयम बरतने का दवाब डालता रहा है. लेकिन बाइडन प्रशासन की अपीलों को अनसुना कर नेतन्याहू ने हमास के साथ हिजबुल्ला, हूती और ईरान पर हमला करना बंद नहीं किया है. राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेट उम्मीदवार कमला हैरिस कई बार युद्ध विराम की अपील कर चुकी थीं. उनकी इन अपीलों ने नेतन्याहू प्रशासन के लिए परेशानी पैदा कर दी थी.लेकिन ट्रंप किसी भी तरह के युद्ध विराम के विरोधी रहे हैं.

इजरायल के हमले में तबाह हुई लेबनान की एक इमारत.
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ट्रंप अपने पिछले कार्यकाल में ईरान के साथ युद्ध के करीब पहुंच गए थे. अरब जगत में जारी युद्ध में ईरान की भूमिका साफ है. वो एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस के नाम पर लेबनान में हिजबुल्ला, फलस्तीन में हमास और यमन के हूतियों के साथ-साथ सीरिया और इराक में मीलिशिया को नैतिक समर्थन के साथ सैन्य साजो-सामान दे रहा है. इससे यह लड़ाई जटिल हो गई है. इजरायल पूरी लड़ाई ईरान के प्रॉक्सी से लड़ रहा है. इस स्थिति में डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति सीधे ईरान से उलझकर युद्ध के विभिन्न पहलुओं को सुलझाने की कोशिश कर सकते हैं. लेकिन इससे पहले हमें उनके शपथ ग्रहण तक का इंतजार करना होगा.
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