जब भी अमरीका के राष्ट्रपति के चुनाव में दो उम्मीदवारों के बीच बहस होती है, तो भारत में कई लोग सुबह सुबह अलार्म लगाकर उठते हैं और बहस सुनते हैं. सुनने से पहले ट्वीट ज़रूर करते हैं ताकि कुछ लोगों को पता चले कि वे लोकल इलेक्शन में भले वोट न देते हों लेकिन यूएस इलेक्शन का डिबेट सुनते हैं. फिर उनका रोना शुरू होता है कि भारत में ऐसा डिबेट नहीं होता है. वेन विल इंडिया हैव दिस काइंड ऑफ यू नो... आय मीन. अमरीका में जो डिबेट आप देखते हैं वो पूरी और एकमात्र तस्वीर नहीं है. प्रेसिडेंशियल डिबेट से पहले साल भर तक रिपब्लिकन पार्टी के भीतर ट्रंप का सोलह उम्मीदवारों के साथ मुकाबला हुआ. अंतिम बहस जॉन कैसिच के साथ हुई, तब जाकर ट्रंप राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए चुने गए. उसी तरह डेमोक्रेटिक पार्टी के भीतर हिलेरी क्लिंटन ने पांच उम्मीदवारों से बहस की. उन सबको हराते हुए उनका अंतिम मुकाबला बर्नी सैंडर्स के संग हुआ और अंत में वे उम्मीदवार बनीं.
कानूनन भारत में भी राजनीतिक दलों में अध्यक्ष के चुनाव की व्यवस्था है. लेकिन क्या आपने किसी भी दल के बारे में सुना है कि आरा से किसी बीजेपी के नेता ने अध्यक्ष के चुनाव में दावेदारी की हो और अपनी प्रतिभा से प्रभावित करते हुए राष्ट्रीय स्तर पर पहुंच गया हो. उसी तरह राजपीपला से कोई ब्लॉक स्तर का कांग्रेसी अध्यक्ष पद के चुनाव में उतर गया हो. आम से लेकर वाम दल तक में क्या ऐसा होता है. नहीं होता है. अब अगर आप प्रेसिडेंशियल डिबेट चाहते हैं तो क्या आप इस बात के लिए तैयार हैं कि प्रधानमंत्री मोदी की उम्मीदवारी तय होने से पहले उनकी बीजेपी के भीतर सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, यशवंत सिन्हा, विजेंद्र गुप्ता, उदित राज, सतीश उपाध्याय, सुशील मोदी, राजनाथ सिंह, शिवराज सिंह चौहान के साथ बहस हो. अंतिम दो उम्मीदवारों में जो जीते उसे बीजेपी का उम्मीदवार बनाया जाए. उसी तरह कांग्रेस में राहुल के साथ सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, मिलिंद देवड़ा, प्रिया दत्त, रीता बहुगुणा, अजय माकन, जयराम रमेश के बीच बहस हो और इनमें से दो के बीच अंतिम मुकाबले के बाद कांग्रेस पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री का उम्मीदवार तय हो.
हमने अमरीकी चुनाव व्यवस्था से मार्केटिंग, कवरेज और प्रबंधन का तरीका पूरी तरह से आयात कर लिया है. वहीं की तरह यहां भी दिन रात सर्वे होते हैं और टीवी पर शो चलता है कि कौन बनेगा मुख्यमंत्री और कौन बनेगा प्रधानमंत्री. प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के नाम पर बाकी विधायक या सांसद बिना अपनी योग्यता के प्रदर्शन के जीत जाते हैं. अमरीका में तो ट्रंप के नाम पर रिपब्लिकन का कोई भी उम्मीदवार सीनेट या कांग्रेस के लिए नहीं जीत सकता. सबको पार्टी और क्षेत्र में अपनी योग्यता साबित करनी होती है.
प्रधानमंत्री मोदी और राहुल गांधी के टाउन हॉल का आपने ज़िक्र सुना होगा. ये सब अमरीकी चुनावी जनसंपर्क और कॉरपोरेट के मॉडल ही तो हैं. अब तो भारत में भी स्टेडियमों में रैलियां होने लगी हैं. डिबेट के बाद अमरीकी चैनलों पर भी चर्चा सुन रहा था कि फलां नेता ने क्या पहना, कैसा बोला, कितनी बार पानी पीया, बहस पर नियंत्रण रख पाया या नहीं. अमरीका में तो साल भर उम्मीदवारों को नीतियों पर सफाई देनी पड़ती है. लेकिन अगर यह सिस्टम इतना ही साफ सुथरा है तो इसी चुनाव में राष्ट्रपति पद के लिए दो और उम्मीदवार हैं, क्या उनका कोई कवरेज हुआ. हम नेता चुन रहे हैं, दूल्हा नहीं. वहां भी भारत की तरह मीडिया के भटकने और बिकने का आरोप लग रहा है. हर चुनाव की तरह इस चुनाव में विश्वसनीयता गिरने की बात हो रही है. पैसे के दम पर विज्ञापन का स्पेस खरीदकर विरोधी उम्मीदवार को चर्चा से बाहर करने की तरकीब खूब चलती है.
आपने टीवी पर देखा होगा कि डोनाल्ड ट्रंप और हिलेरी क्लिंटन के बीच बहस हो रही है. वो बहस हो रही है विश्वविद्यालय में. हमारे नेता भी इंटरव्यू देते हैं मगर पहले से सवाल लिखवा लेते हैं, छात्रों के बीच जाते हैं तो सवालों की चिट पहले मंगा लेते हैं. ट्रंप और क्लिंटन की बहस को जो एंकर संचालित कर रहा था वो पहले बताता है कि सवाल मेरे हैं और किसी से साझा नहीं किये गए हैं.
जिस वक्त हिलेरी और ट्रंप बहस कर रहे थे उसी वक्त अमरीका के तमाम विश्वविद्यालयों के ऑडिटोरियम में इस डिबेट को लाइव दिखाया जा रहा था. डिबेट से पहले पैनल की चर्चा भी हुई और डिबेट के बाद भी चर्चा हुई. इस तरह की बहस का आयोजन वहां दोनों दलों की छात्र शाखाएं करती हैं. यहीं से भविष्य के लिए नेता भी पैदा होते हैं. इस बात पर भी बहस हुई कि जिस एंकर ने ट्रंप और हिलेरी की बहस को संचालित किया वो कितना तटस्थ था. आपने तो दो मुख्य उम्मीदवारों के बीच की बहस को ही भारत में देखा है लेकिन वहां के विश्वविद्यालयों में बहस पर बहस होती है. भारत में इसकी मांग करेंगे तो कुछ लोग कहने लगेंगे कि टैक्स के पैसे से पढ़ने आए हैं या राजनीति करने. अमरीका में इस वक्त सीनेट और कांग्रेस का भी चुनाव हो रहा है. वहां भी हर स्तर पर उम्मीदवारों के बीच बहस होती है.
अमरीका का लोकतंत्र जितना भी महान हो लेकिन उसके चुनाव में किसी ग़रीब का चेहरा नहीं दिखता है. भारत में प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को मंच से दिख तो जाता है कि उनकी रैली में ढाई सौ से पांच सौ रुपये देकर लाए लोगों की माली हालत कैसी है. अमरीका के नेता किसी ग़रीब को लेकर अपनी स्मृति बताते हैं कि मेरे दादा जी ड्राईवर थे. इसे सुनकर वहां लोग भावुक हो जाते हैं. फैमिली टच आ जाता है और भूल जाते हैं कि जो नेता अपने दादा की ड्राईवरी का किस्सा सुना रहा है उसके प्रचार का बजट एक हज़ार करोड़ से लेकर तीन हज़ार करोड़ तक का है. आप ओपनसीक्रेट डॉट ओआरजी पर जाकर देख सकते हैं कि कितना पैसा आया है कितना खर्च हुआ है. जो पैसा बच जाता है वो डोनर को लौटा दिया जाता है. इस बार दोनों मिलकर 6000 करोड़ खर्च करने वाले हैं. 6000 करोड़.
ये पहला डिबेट है. ट्रंप राष्ट्रपति ओबामा पर आरोप लगाते रहे हैं कि ओबामा ने आतंकी संगठन आईएसआईएस की स्थापना की है और हिलेरी क्लिंटन उसकी कोफाउंडर हैं. भारत में ऐसे आरोप लग जाएं तो पार्टी से जुड़े बेरोज़गार वकील मानहानि का केस कर दें. ट्रंप ने ये मामला फिर उठा दिया. हिलेरी क्लिंटन बोलती रहीं कि मेरे पास आईएसआईएस से लड़ने की योजना है. ट्रंप ने कहा कि आप शत्रु को बता रही हैं कि आप क्या कर रही हैं. वे तंज कर रहे हैं कि आपने आईएसआईएस का लड़ने के नाम पर समर्थन किया. हिलेरी ने बताया कि आईएसआईएस से लड़ने के लिए टेक कंपनियों के साथ मिलकर काम करना होगा. हवाई हमले भी करने होंगे. ट्रंप ने कहा कि इराक से सेना हटाने के फैसले के कारण ही आईएसआईएस जैसे संगठन को पनपने का मौका मिला. ट्रंप ने कहा कि क्लिंटन तो कई साल से आईएसआईएस से निपटने का दावा कर रही हैं लेकिन वो छोटे से संगठन से अब कई देशों में फैल चुका है.
इस तरह से टैक्स से लेकर तमाम मुद्दों पर नब्बे मिनट तक दोनों के बीच बहस हुई. मीडिया ने दोनों की बातों की फैक्ट चेकिंग की और बताया कि किसने जवाब देते वक्त किस तरह से तथ्यों को सही बताया या गलत बताया. बहस 2016 में हो रही है लेकिन हिलेरी क्लिंटन ने ट्रंप से सवाल कर दिया कि 1970 के दशक में ट्रंप ने अश्वेत को किराये पर मकान देने से मना कर दिया था. इसलिए वो नस्लभेदी हैं और ओबामा की पैदाइश के ख़िलाफ़ झूठ फैला रहे हैं. क्लिंटन ने यह भी कहा कि ट्रंप यह नहीं बता रहे हैं कि वे टैक्स देते थे या नहीं. सभी उम्मीदवारों ने अपना टैक्स रिटर्न सार्वजनिक किया है. ट्रंप क्यों नहीं कर रहे हैं. हिलेरी का आरोप है कि ट्रंप टैक्स नहीं देते हैं. ट्रंप का जवाब था कि इसका मतलब है कि वे स्मार्ट हैं. तो हिलेरी ने कहा कि आपने सेना के लिए कुछ नहीं दिया, स्वास्थ्य या स्कूल के लिए कुछ नहीं दिया. ट्रंप ने हिलेरी की बीमारी को मुद्दा बना दिया कि वे कमज़ोर हो गई हैं. स्टेमिना नहीं है. यह सब सुनकर आप राहत की सांस ले सकते हैं कि हम इससे भी नीचे गिरते रहे हैं. भाषणों में गिरने की होड़ के लिए हमें सीएनएन और फॉक्स न्यूज देखने की ज़रूरत नहीं है. हम गिरना जानते हैं.
ट्रंप का उभार पूरी दुनिया में बहस का मुद्दा है. कहा जा रहा है कि अमरीका दक्षिणपंथ की तरफ जा रहा है. जहां बाहर से आए लोगों या दूसरे धर्मों के प्रति कम सहिष्णुता है. ट्रंप की बातें और मुद्रायें अजीब हैं. हिलेरी क्लिंटन इस बहस के बाद आगे बताई जा रही हैं लेकिन क्या बहस से ही वहां नतीजे तय होते हैं. अमरीका ट्रंप के कारण बदल रहा है या अपनी ग़रीबी के कारण बेचैन है.